‼️🎀परिवर्तिनी एकादशी🎀‼️
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी होती है। इस एकादशी को पद्मा एकादशी, वामन एकादशी, डोल ग्यारस, जलझूलनी एकादशी जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस साल परिवर्तिनी एकादशी का व्रत शनिवार 14 सितंबर 2024 को रखा जाएगा।
परिवर्तिनी एकादशी को लेकर ऐसी धार्मिक मान्यता है कि चातुर्मास की चार माह की अवधि के दौरान भगवान श्रीहरि विष्णु इसी दिन करवट बदलते हैं, इसलिए इसका नाम परिवर्तिनी एकादशी पड़ा। इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा होती है।

परिवर्तिनी एकादशी का व्रत-पूजन करने वाले भक्तों के पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में भी परिवर्तिनी एकादशी के व्रत का महत्व बताया गया है। साथ ही इस दिन दान का भी विधान है। लेकिन अगर आप इस दिन अपनी राशि अनुसार दान करेंगे तो इससे अमोघ फल की प्राप्ति होगी, समस्याओं से मुक्ति मिलेगी और भगवान विष्णु आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करेंगे।

कृष्ण जन्म के 18 वें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था। इसी दिन को ‘डोल ग्यारस’ के रूप में मनाया जाता है। जलवा पूजन के बाद ही संस्कारों की शुरुआत होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को डोल में बिठाकर तरह-तरह की झांकी के साथ बड़े ही हर्षोल्लास के साथ जुलूस निकाला जाता है।
राजस्थान में जलझूलनी एकादशी को डोल ग्यारस एकादशी भी कहा जाता है। इस अवसर पर यहां भगवान गणेश ओर माता गौरी की पूजा एवं स्थापना की जाती है। इस अवसर पर यहां पर कई मेलों का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर देवी-देवताओं को नदी-तालाब के किनारे ले जाकर इनकी पूजा की जाती है। संध्या समय में इन मूर्तियों को वापस ले आया जाता है। अलग- अलग शोभा यात्राएं निकाली जाती है। जिसमें भक्तजन भजन, कीर्तन, गीत गाते हुए प्रसन्न मुद्रा में खुशी मनाते हैं।
॥जलझूलनी एकादशी पूजा॥
इस व्रत में धूप, दीप,नेवैद्य और पुष्प आदि से पूजा करने का विधि-विधान है। इस तिथि के व्रत में सात कुम्भ स्थापित किये जाते है। सातों कुम्भों में सात प्रकार के अलग- अलग धान भरे जाते है। इन सात अनाजों में गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौं, चावल और मसूर है। एकादशी तिथि से पूर्व की तिथि अर्थात् दशमी तिथि के दिन इनमें से किसी धान्य का सेवन नहीं करना चाहिए।
कुम्भ के ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रख पूजा की जाती है। इस व्रत को करने के बाद रात्रि में श्री विष्णु जी के पाठ का जागरण करना चाहिए यह व्रत दशमी तिथि से शुरु होकर, द्वादशी तिथि तक जाता है। इसलिये इस व्रत की अवधि सामान्य व्रतों की तुलना में कुछ लम्बी होती है। एकादशी तिथि के दिन पूरे दिन व्रत कर अगले दिन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घडा ब्राह्माण को दान में दिया जाता है।
॥पद्मा एकादशी महात्म्य॥
कथा इस प्रकार है सूर्यवंश में मान्धाता नामक चक्रवर्ती राजा हुए उनके राज्य में सुख संपदा की कोई कमी नहीं थी, प्रजा सुख से जीवन व्यतीत कर रही थी परंतु एक समय उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई प्रजा दुख से व्याकुल थी तब महाराज भगवान नारायण की शरण में जाते हैं और उनसे अपनी प्रजा के दुख दूर करने की प्रार्थना करते हैं। राजा भादों के शुक्लपक्ष की ‘एकादशी’ का व्रत करता है।

इस प्रकार व्रत के प्रभाव स्वरुप राज्य में वर्षा होने लगती है और सभी के कष्ट दूर हो जाते हैं राज्य में पुन: खुशियों का वातावरण छा जाता है। इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए ‘पद्मा एकादशी’ के दिन सामर्थ्य अनुसार दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है, जलझूलनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत करता है, उसे भूमि दान करने और गोदान करने के पश्चात मिलने वाले पुण्यफलों से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है।