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स्वाभिमान - Sanatan-Forever

स्वाभिमान

Self Respect

स्वाभिमान
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आज बेटी घर आई हुई थी। घर में अच्छी खासी चहल पहल थी। बाहर पूरा परिवार एक साथ बैठकर खिल खिला रहा था। हंसी ठहाकों की गूंज अंदर कमरे तक सुनाई दे रही थी। गगन जी का भी मन कर रहा था कि वो भी अपने परिवार के साथ बैठे, बातें करें। पर वो तो अपने बीमार शरीर और उदास मन को लिए अपने≈ कमरे में पलंग पर लेटे हुए थे।

आजकल शरीर साथ नहीं देता, बूढ़ा और बीमार जो हो चुका है। ज्यादा बोल भी नहीं पाते। पर मन बहुत करता है अपने परिवार के साथ बैठने का, उनसे बातें करने का। पर ये तो उन्हीं के कर्म थे कि आज पत्नी उनके साथ ना बैठती थी और ना ही ज्यादा बातें करती थी। हालांकि ये अलग बात है कि खाना, पीना, दवाईयां सब कुछ सही समय पर वो जरूर दे जाती थी।

जिन लोगों के लिए उस पत्नी को उन्होंने इतना जलील किया आज उन लोगों में से कोई भी उनके साथ नहीं थे। थी तो वही, जो जलालत के बावजूद इस घर में रह गई। उनके जैसे शख्स के साथ निभा गई। पर खामोशी का आवरण ओड़े हमेशा चुपचाप सी ही रहती है। जानते थे कि बाहर बच्चे हंस रहे हैं बोल रहे हैं। और वो?
वो उनको हंसते बोलते देखकर सिर्फ मुस्कुराकर चुपचाप उन लोगों को देख रही होगी।

आज भी याद है उन्हें, जब सुमन उनकी पत्नी बनकर इस घर में आई थी। कितनी खुश मिजाज थी वो। हमेशा हंसती खिल खिलाती रहती थी। उसका यही स्वभाव तो पसंद आया था उन्हें जब उन्होंने अपने एक रिश्तेदार की शादी में उसे देखा था। बस एक नजर में ही उनकी बेबाक हंसी उनके दिल को भा गई थी और इसलिए उन्होंने शादी के लिए हां कर दी।

पर ये नहीं पता था कि इसी हंसी के वो दुश्मन हो जाएंगे। अक्सर अम्मा से डांट भी खा लेती। आखिर बहू का इतना हंसना बोलना उन्हें पसंद नहीं था।

और फिर अपनी अम्मा का मन रखने के लिए गगन जी भी सुमन को ही डांट कर चुप कर देते थे। लेकिन सुमन भी क्या करती? अपने स्वाभाविक स्वभाव को तो छोड़ नहीं सकती थी। और उसका स्वभाव तो वैसे ही हंसमुख था तो फिर कुछ देर बाद वापस वैसे ही हो जाती। गगन जी भी मन ही मन मुस्कुरा कर रह जाते। पर आज तक खुलकर जाहिर नहीं कर पाई।

लेकिन उस दिन जो कुछ हुआ उसके बाद सुमन का वो स्वाभाविक स्वभाव कहां गायब हो गया। उसकी कसक आज भी गगन जी के मन में थी। जरा सी हिम्मत नहीं कर पाए अपनी अम्मा के सामने ये जानते हुए कि पत्नी सही है। और पत्नी को ही दबा कर रख दिया।

उस दिन छोटी बहन जानकी की सगाई थी। बड़ी बहन आरती भी घर पर आई हुई थी। और कई खास रिश्तेदार घर पर मौजूद थे। सगाई का प्रोग्राम पूरा हो चुका था। सुमन और आरती ने सारा सामान अम्मा के कमरे में रख दिया था। सुमन के मायके वाले अपने घर रवाना हो चुके थे। बाहर सभी खास रिश्तेदार बैठे बातें कर रहे थे। गगन भी उन्हीं लोगों के साथ था। इधर सुमन रसोई में काम कर ही रही थी कि बाहर से अम्मा जी के जोर जोर से चिल्लाने की आवाज आई,

” हे भगवान! मैं तो लुट गई। बर्बाद हो गई। कौन बैरी दुश्मन पीछे पड़ा है”
अचानक अम्मा की आवाज सुनकर सब लोग अंदर की तरफ भागे। अम्मा अपने कमरे में थे। गगन ने आकर अम्मा से पूछा,
” क्या हुआ अम्मा? इस तरह रो क्यों रही हो? क्या हो गया?”
पर अम्मा तो जोर-जोर से छाती पीट पीट कर दहाड़े मार के रो रही थी। चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
“अरे बताओ तो सही हुआ क्या है? रोना बंद करोगी तो हमें पता चलेगा ना “
पीछे से मामा जी ने भी कहा।

मामा जी की बात सुनकर अम्मा रोते हुए बोली,
” अरे जानकी के ससुराल से आए हुए गहने कहां है? मिल नहीं रहे। जरूर चोरी हो गए होंगे। हे भगवान! मैं इसके ससुराल वालों को क्या जवाब दूंगी। मैं तो बर्बाद हो गई”
अम्मा रोती रोती बोली।
अम्मा के बोलते ही अजीब सी खामोशी घर में छा गई।
” अरे ध्यान से देख। इन्हीं सामान में कहीं रखा होगा “
मामा जी दोबारा बोले।
” भैया पूरा सामान ऊपर नीचे करके देख चुकी हूं। पर गहने नहीं है। जरूर चोरी हुए होंगे “
“अरे शुभ शुभ बोल। एक बार हमें देखने दे”

अम्मा को परे हटाकर मामा जी खुद सामान चेक करने लगे, लेकिन उसमें गहने नहीं थे। फिर कुछ सोच कर मामा जी बोले ,
” अरे गहने कोई इन सामानों के साथ यहां रखेगा क्या? अलमारी में रख दिए होंगे तुमने। देख जरा”
” अरे मैंने सामान कहां रखा? सामान तो आरती और सुमन रख रही थी “
” हां तो आरती और सुमन से पूछ ले। जरूर उन्होंने अलमारी में रख दिए होंगे”
मामा जी के समझाने पर अम्मा ने आशा भरी नजरों से आरती की तरफ देखा तो आरती ने कहा,
” अम्मा मुझे क्या देख रही हो। कोई मैंने थोड़ी ना गहने लिए है। अपनी बहू से पूछो। उसी ने कहीं रख दिए होंगे”
आरती के जवाब को सुनकर सुमन दंग रह गई क्योंकि गहने की थाली तो आरती ही उठा कर लाई थी। और गहने रखे भी उसी ने ही थे।

“जीजी ऐसा क्यों बोल रही हो। गहने तो आप ही लेकर आई थी ना”
सुमन का ऐसा कहना हुआ और आरती ने रोना-धोना मचा दिया।
“अब मेरे मायके में ही मुझ पर चोरी का इल्जाम लगेगा। यही दिन देखना बाकी रह गया था। आज मेरे बापू जिंदा होते तो मजाल थी कोई मुझे इतना कह कर दिखा देता”
उसे रोता देखकर अम्मा सुमन पर दहाड़ पड़ी,

” खबरदार जो मेरी बच्ची पर चोरी का इल्जाम लगाया तो। तू ने ही गहने लिए होंगे। ये मेरी बेटी है। इसको मैं बचपन से जानती हूं। अरे जन्म दिया है मैंने इसे। इसमें मेरे संस्कार कूट-कूट के भरे हैं। तू बाहर से आई है। जरूर तूने ही गहने लिए होंगे और तेरे मायके वालों को दे दिए होंगे। तभी तेरे मायके वाले इतनी जल्दी चले गए”
“बस अम्मा जी। आप मेरे माता-पिता पर चोरी का इल्जाम कैसे लगा सकती हो। मैंने तो गहनों की शक्ल तक नहीं देखी, चुराना तो दूर की बात है”

सुमन ने पलट कर जवाब दे दिया। बस फिर क्या था? आरती और अम्मा दोनों ही सुमन पर चढ़ पड़ी। लेकिन इस बार सुमन भी बराबर जवाब दे रही थी। आखिर उस पर चोरी का इल्जाम लगा था। कोई छोटी-मोटी बात थोड़ी ना थी। घर में इतना हंगामा होते देखकर मामा जी ने बीच बचाव किया। लेकिन आरती और अम्मा तो चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी।
” सच-सच बता, गहने कहाँ पर है? अगर तू नहीं बोलेगी तो तेरे मां-बाप से जाकर गहने लेंगे हम लोग। और वही सबके सामने उनकी इज्जत की मटिया मेल करेंगे”

” अम्मा जी मेरे मां-बाप इज्जतदार लोग है। कोई चोर उचक्के नहीं जो आपके घर पर बुलावे पर आएंगे और सामान चोरी करके ले जाएंगे”
सुमन ने थोड़ी तेज आवाज में कहा।

” बस सुमन। तुम मेरी अम्मा से किस तरह से बात कर रही हो। याद रखो तुम इस घर की बहू हो। अपनी आवाज को नीचे रख कर बोलो। और अगर गहने लिए भी है तो दे दो। कोई तुमसे कुछ नहीं कहेगा”
अचानक गगन सुमन पर बिगड़ गया।

गगन के इस जवाब से सुमन हक्की-बक्की रह गई। मतलब गगन भी उस पर ही इल्जाम लगा रहा था। एक लड़की जो ससुराल को अपना घर मान लेती है, आज वहां सुमन बिल्कुल अकेली खड़ी थी। पति तक साथ नहीं था। गगन के जवाब के बाद सुमन की नजर आरती से टकराई तो वो मंद मन मुस्कुरा रही थी। इससे बड़ी जीत और क्या हो सकती थी।
लेकिन तब तक आरती का नौ साल का बेटा अपने हाथ में एक कपड़े की छोटी सी पोटली लेकर आया और सबके सामने ही बोला,

” मां ये अपना सामान नहीं है। किसी ने गलती से अपने सामान में रख दिया”
उसे देखते ही आरती के चेहरे पर पसीने की बूंदे चमकने लगी। उसके चेहरे पर डर देखकर मामा जी ने वो पोटली उस बच्चे के हाथों से अपने हाथों में ले ली। और उस पोटली को खोल कर देखा तो सब भौंचक्के रह गए। उसमें जानकी के ससुराल से आए हुए गहने थे।

सबने हैरानी से आरती की तरफ देखा। पर वो तो बेशर्मों की तरह अपने बेटे का हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में चली गई, जैसे कुछ हुआ ही ना हो। रिश्तेदार मुंह पर हाथ रखकर दबी जबान से बातें करने लगे। तभी अम्मा बोली,
” अरे वो भूल गई होगी रखकर। इसमें यूं जबान दबाकर बात करने की क्या जरूरत है

और फिर सुमन से बोली,
” बेटी है वो मेरी। उसने गहने चुराए नहीं थे बल्कि संभाल कर रखे थे अपने पास। उसकी बराबरी की तो सोचना भी मत। पर तूने यहां जो इस तरह से सबके सामने चिल्ला चिल्ला कर मुझसे बात की है ना। उसकी माफी मांग मुझसे “
अम्मा की बात सुनकर सुमन की आंखों में आंसू आ गए। भला कोई औरत ऐसी निर्दयी कैसे हो सकती है। उसने आशा भरी नजरों से गगन की तरफ देखा। लेकिन गगन तो नज़रें झुकाए चुपचाप खड़ा था मैं पानी की एक बूंद नहीं पियूंगी। आखिर उसने इतने रिश्तेदारों के सामने मुझसे ऊंची आवाज में बात की तो की कैसे? सबके सामने मेरी बेइज्जती कर दी।

आखिर गगन ने समझाया,
” अम्मा जो बात हो गई अब उसे छोड़ो भी। आप पानी पी लो। आपकी तबीयत बिगड़ जाएगी “
” अरे ऐसे कैसे छोड़ दूं? तेरी पत्नी ने इतने लोगों के सामने मेरी बेइज्जती की है। माफी तो उसे मांगने ही पड़ेगी”
अम्मा अपनी ही ऐंठ में बोली।
” पर अम्मा, आरती जीजी ने भी तो गलती की थी। आखिर सुमन की क्या गलती”
” अरे वाह! आज तो बीवी के लिए तो अपनी बहन को गलत बता रहा है। अरे वो गहने रखकर भूल गई होगी। भला कौन बेटी अपने घर में चोरी करती है। लेकिन बहू? बहु को तो इज्जत को ढक कर रखना चाहिए थी। वो भी सबके सामने बेशर्मों की तरह५ लड़ पड़ी मुझसे। अब तू उसका साथ दे रहा है। इससे तो मैं मर जाती तो ज्यादा अच्छा था। पर याद रख पत्नी तो फिर भी तुझे दोबारा मिल जाएगी, मां नहीं मिलेगी दोबारा”

अम्मा आंसू बहाते हुए बोली।
आखिर अपनी मां को रोता देखकर गगन वहां से उठा और सीधे सुमन के पास कमरे में पहुंच गया और जाकर बोला,

” सुमन क्या ऐंठ में बैठी हुई हो तुम? जाकर अम्मा से माफी मांग५ लो ना।‌देखा उन्होंने पानी की बूंद तक नहीं पी है। कहीं उनकी तबीयत खराब ना हो जाए”
” तो इसकी जिम्मेदारी मेरी है क्या। मैं क्यों माफी मांगू। चोरी तुम्हारी बहन ने की थी, मैंने थोड़ी ना की थी। मेरे मां-बाप को ताने भी वो लोग मार रहे थे, इल्जाम भी मुझ पर वो लोग लगा रहे थे, और माफी मैं ही मांगू? तुम्हारी अम्मा पानी नहीं पी रही है तो उसमें मैं कुछ नहीं कर सकती। आखिर उनके गलत के लिए मैं क्यो माफी मांगू?”
” सुमन समझो तो। देखो पत्नी तो मुझे और मिल जाएगी,। वो दोबारा नहीं मिलेगी। तुम्हारी एक माफी से उन्हें खुशी मिलती है तो माफी मांग लो ना”
गगन ने अपनी आवाज ऊंची करते हुए कहा। उसके इस जवाब से सुमन के अंदर कुछ दरक सा गया। पत्नी और मिल जाएगी पर मां दूसरी नहीं मिलेगी। तो पत्नी फिर हाथ थाम कर इस घर में लाई क्यों गई। इस घर में मेरी जगह कहां है? सोच सोच कर सुमन का रोना छूट गया।
पर माता-पिता को दुख ना हो। उन तक यह बात ना पहुंचे इसलिए आंसुओं का घूट पीकर मामा जी और बुआ जी के सामने उसने अम्मा से आखिर पैर छूकर माफी मांग ली। जिससे अम्मा के झूठे स्वाभिमान को बहुत तसल्ली मिली। लेकिन सुमन के स्वाभिमान के टुकड़े-टुकड़े हो गए।
लेकिन वो आखरी दिन था जब सुमन को इतना बोलते हुए देखा था। उसके बाद तो वो बिल्कुल खामोश हो गई। अब ना वो ज्यादा किसी से बोलती थी और ना ही खिल खिलाती थी। ‘हां’ और ‘हूं’ में जवाब देकर अपने काम से काम रखती थी। ना किसी से लेना, ना किसी को देना। जिसने जो काम कह दिया चुपचाप कर लेना और फिर एक तरफ चुपचाप बैठ जाना। सोचते-सोचते गगन जी की आंखों में आंसू आ गए।

तभी सुमन अंदर कमरे में आई। हाथ में पानी का गिलास था। वहीं पास वाली ड्राअर में से दवाइयां निकाली और गगन जी को देते हुए हाथ आगे बढ़ा दिए।
लेकिन गगन जी ने हाथ में दवाई लेने की जगह अपने दोनों हाथ जोड़ दिए और अपनी कंपकंपाती आवाज में कहा,
” सुमन अब तो माफ कर दो मुझको”
उनकी आवाज सुनकर सुमन ने एक नजर उनकी तरफ देखा और फिर दवाई हाथ में देते हुए बोली,
” आपकी दवाई का समय हो गया है”
” सुमन माफ कर दे मुझे। तेरे इतने सालों के खामोशी नासूर बन चुकी है मेरे लिए। अब बर्दाश्त नहीं होता”
” कोई बात नहीं है जी। माफी क्यों मांगते हो? इस घर में गलतियों के लिए कोई माफी नहीं मांगता। बल्कि बिना गलती के माफी मंगवाई जाती है”
” सुमन पति हूं मैं तेरा। तेरी माफी का हकदार हूं। मुझे माफ कर दे”
गगन जी ने जोर देते हुए कहा।
” हम्म! पत्नी….. पत्नी का क्या है? वो तो और मिल जाती है। फिर मुझसे माफी मांग कर क्यों अपना मुंह खराब कर रहे हो”
कहकर सुमन कमरे के बाहर निकल गई। लेकिन गगन जी के पास से सिवाय पछतावे के और कुछ नहीं था अब।

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