Warning: Attempt to read property "base" on null in /home/u599592017/domains/sanatan.techtunecentre.com/public_html/wp-content/plugins/wp-to-buffer/lib/includes/class-wp-to-social-pro-screen.php on line 89
सीता के वनवास का रहस्य। - Sanatan-Forever

सीता के वनवास का रहस्य।

सीता के वनवास का रहस्य।

सीता के वनवास का रहस्य।
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

एक बार सीता
अपनी सखियों के साथ मनोरंजन के लिए महल के बाग में गईं. उन्हें पेड़ पर बैठे तोते का एक जोड़ा दिखा। दोनों तोते आपस में सीता के बारे में बात कर रहे थे। एक ने कहा-अयोध्या में एक सुंदर और प्रतापी कुमार हैं जिनका नाम श्रीराम है। उनसे जानकी का विवाह होगा। श्रीराम ग्यारह हजार वर्षों तक इस धरती पर शासन करेंगे। सीता-राम एक दूसरे केजीवनसाथी की तरह इस धरती पर सुख से जीवन बिताएंगे।

सीता ने अपना नाम सुना तो दोनों पक्षी की बात गौर से सुनने लगीं। उन्हें अपने जीवन के बारे में और बातें सुनने की इच्छा हुई। सखियों से कहकर उन्होंने दोनों पक्षी पकड़वा लिए। सीता ने उन्हें प्यार से पुचकारा और कहा- डरो मत। तुम बड़ी अच्छी बातें करते हो। यह बताओ ये ज्ञान तुम्हें कहां से मिला.। मुझसे भयभीत होने की जरूरत नहीं।

दोनों का डर समाप्त हुआ। वे समझ गए कि यह स्वयं सीता हैं। दोनों ने बताया कि वाल्मिकी नाम के एक महर्षि हैं। वे उनके आश्रम में ही रहते हैं। वाल्मिकी रोज राम-सीता जीवन की चर्चा करते हैं। वे यह सब सुना करते हैं और सब कंठस्थ हो गया है।
सीता ने और पूछा तो शुक ने कहा- दशरथ पुत्र राम शिव का धनुष भंग करेंगे और सीता उन्हें पति के रूप में स्वीकार करेंगी। तीनों लोकों में यह अद्भुत जोड़ी बनेगी।सीता पूछती जातीं और शुक उसका उत्तर देते जाते। दोनों थक गए।

उन्होंने सीता से कहा यह कथा बहुत विस्तृत है। कई माह लगेंगे सुनाने मेंयह कह कर दोनों उड़ने को तैयार हुए।

सीता ने कहा- तुमने मेरे भावी पति के बारे में बताया है. उनके बारे में बड़ी जिज्ञासा हुई है। जब तक श्रीराम आकर मेरा वरण नहीं करते मेरे महल में तुम आराम से रहकर सुख भोगो।

शुकी ने कहा- देवी हम वन के प्राणी है।पेडों पर रहते सर्वत्र विचरते हैं।मैं गर्भवती हूं। मुझे घोसले में जाकर अपने बच्चों को जन्म देना है।

सीताजी नहीं मानी। शुक ने कहा- आप जिद न करें. जब मेरी पत्नी बच्चों को जन्म दे देगी तो मैं स्वयं आकर शेष कथा सुनाउंगा। अभी तो हमें जाने दें।

सीता ने कहा- ऐसा है तो तुम चले जाओ लेकिन तुम्हारी पत्नी यहीं रहेगी। मैं इसे कष्ट न होने दूंगी।शुक को पत्नी से बड़ा प्रेम था। वह अकेला जाने को तैयार न था। शुकी भी अपने पति से वियोग सहन नहीं कर सकती थी। उसने सीता को कहा- आप मुझे पति से अलग न करें। मैं आपको शाप दे दूंगी।

सीता हंसने लगीं. उन्होंने कहा- शाप देना है तो दे दो। राजकुमारी को पक्षी के शाप से
क्या बिगड़ेगा।शुकी ने शाप दिया- एक गर्भवती को जिस तरह तुम उसके पति से दूर कर रही हो उसी तरह तुम जब गर्भवती रहोगी तो तुम्हें पति का बिछोह सहना पड़ेगा। शाप देकर शुकी ने प्राण त्याग दिए।

पत्नी को मरता देख शुक क्रोध में बोला- अपनी पत्नी के वचन सत्य करने के लिए मैं ईश्वर को प्रसन्न कर श्रीराम के नगर में जन्म लूंगा और अपनी पत्नी का शाप सत्य कराने का माध्यम बनूंगा।

वही शुक(तोता) अयोध्या का धोबी बना जिसने झूठा लांछन लगाकर श्रीराम को इस बात के लिए विवश किया कि वह सीता को अपने महल से निष्काषित कर दें।
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

आप हमारे यूट्यूब को सब्सक्राइब करके सुने और लाभ पाएं।
https://youtube.com/@samadhanb.k.o.p.tiwari4986?si=G8nen0DJ-SiUm75Z
https://sanatan.techtunecentre.com/

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com
Scroll to Top
Verified by MonsterInsights