
संस्कार
नतीजन
पहले बच्चों को घर में समझाया जाता था कि गाँव की लड़की बहन के समान है, कहीं जरुरत पड़े तो उसकी रक्षा की जिम्मेदारी तुम्हारी है,
परिवार के बच्चो को सही या गलत पर टोकने का हक सभी जन का था
पर अब परिवार में ही बच्चो के गलत होने पर देखते हुए भी परिवारजन भी नही बोल सकते ,
मेरी लडकी है या मेरा लड़का है तुमसे क्या मतलब जैसी कड़वी बाते सुना देते है मां बाप…
आज आधुनिकता के नाम पर स्कूल से घर आते ही 8 साल के बच्चे से उसी की माँ बत्तीसी दिखाकर पूछती है, कोई गर्ल फ्रेंड बनाई या नहीं? साथ में बैठा बाप भी टोकने की बजाय हँसता है….
घर से नारी सम्मान के संस्कारों की जगह नारी भोग की मानसिकता का विष पिलाया जा रहा है। ऐसे संस्कार राम राज्य नहीं बल्की विनाश काल के राज्य का निर्माण करेंगे!!!
पहले नौजवान कालेज जाते… सगी बहन तो छोड़िए गाँव की लड़की की और आँख उठाकर देखने वालो को ढंग से समझा देते थे… उन में से बहुत सारे ,पीड़ित लड़की को शक्ल से जानते तक नहीं होते थे मगर गाँव की लड़की है बस सोच के सम्मान की मानसिकता और संस्कार उन्हें उस बहन के सम्मान की खातिर जान पर खेलने से भी परहेज नहीं करने देते थे।
और आज की मानसिकता देखिए। पड़ोस का आवारा किसी दूर स्थान के आवारा से यह कहता अमूमन मिल जाएगा कि हमसे तो पटती नहीं, भाई तु पटा ले!!
प्रश्न विचारणीय है साथियों! अपने घर को बदलो देश बदलते देर नहीं लगेगी!
जिन बुजुर्गों के विचारों को हम रद्दी की टोकरी में फेंक आये और आधुनिकता के नाम पर नंगापन और फूहड़ता को ढोते फिर रहे हैं, ऐसी आधुनिकता को आग लगे।।।।।