*= संसार की वास्तविकता =*
*पुराने जमाने में एक राजा हुए थे, “भर्तृहरि”। वे कवि भी थे। उनकी रानी पिंगला अत्यंत रूपवती थी।*
*भर्तृहरि ने स्त्री के सौंदर्य और उसके बिना जीवन के सूनेपन पर 100 श्लोक लिखे, जो श्रृंगार शतकम् के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्हीं के राज्य में एक ब्राह्मण (योगी गोरखनाथ) भी रहता था, जिसने अपनी नि:स्वार्थ पूजा से देवता को प्रसन्न कर लिया।*

*देवता ने उसे वरदान के रूप में अमर फल देते हुए कहा कि “इससे आप लंबे समय तक युवा रहोगे।”*
*ब्राह्मण ने सोचा कि ‘भिक्षा मांग कर जीवन बिताता हूं, मुझे लंबे समय तक जी कर क्या करना है? हमारा राजा बहुत अच्छा है, उसे यह फल दे देता हूं। वह लंबे समय तक जीएगा तो प्रजा भी लंबे समय तक सुखी रहेगी।’*
*वह राजा के पास गया और उनसे सारी बात बताते हुए वह फल उन्हें दे आया।*
*राजा फल पाकर प्रसन्न हो गया। फिर मन ही मन सोचा कि ‘यह फल मैं अपनी रानी को दे देता हूं। वह ज्यादा दिन युवा रहेगी तो ज्यादा दिनों तक उसके साहचर्य का लाभ मिलेगा। अगर मैंने फल खाया तो वह मुझ से पहले ही मर जाएगी और उसके वियोग में मैं भी नहीं जी सकूंगा।’*
*उसने वह फल अपनी रानी को दे दिया। लेकिन, रानी तो नगर के कोतवाल से प्यार करती थी। वह अत्यंत सुदर्शन, हृष्ट-पुष्ट और बातूनी था।*

*अमर फल उसको देते हुए रानी ने कहा कि “इसे खा लेना, इससे तुम लंबी आयु प्राप्त करोगे और मुझे सदा प्रसन्न करते रहोगे।”*
*फल ले कर कोतवाल जब महल से बाहर निकला तो सोचने लगा कि ‘रानी के साथ तो मुझे धन-दौलत के लिए झूठ-मूठ ही प्रेम का नाटक करना पड़ता है और यह फल खाकर मैं क्या करूंगा। इसे मैं अपनी परम मित्र राज नर्तकी को दे देता हूं।’*
*’वह कभी मेरी कोई बात नहीं टालती। मैं उससे प्रेम भी करता हूं और यदि वह सदा युवा रहेगी, तो दूसरों को भी सुख दे पाएगी।’ उसने वह फल अपनी उस नर्तकी मित्र को दे दिया।*
*राज नर्तकी ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप वह अमर फल अपने पास रख लिया। कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि ‘कौन मूर्ख यह पाप भरा जीवन लंबा जीना चाहेगा। हमारे देश का राजा बहुत अच्छा है, उसे ही लंबा जीवन जीना चाहिए।’*
*यह सोच कर उसने किसी प्रकार से राजा से मिलने का समय लिया और एकांत में उस फल की महिमा सुना कर उसे राजा को दे दिया और कहा कि “महाराज! आप इसे खा लेना।”*
*राजा फल को देखते ही पहचान गया और भौंचक्का रह गया।*

*पूछताछ करने से जब पूरी बात मालूम हुई, तो उसे वैराग्य हो गया और वह राज-पाट छोड़ कर जंगल में चला गया। वहीं उसने वैराग्य पर 100 श्लोक लिखे जो कि वैराग्य शतकम् के नाम से प्रसिद्ध हैं।*
*_सार_*
*_यही इस संसार की वास्तविकता है। एक व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है और चाहता है कि वह व्यक्ति भी उसे उतना ही प्रेम करे।_*
*_परंतु विडंबना यह है कि वह दूसरा व्यक्ति किसी अन्य से प्रेम करता है। इसका कारण यह है कि संसार व इसके सभी प्राणी अपूर्ण हैं। सब में कुछ न कुछ कमी है।_*
*_सिर्फ एक ईश्वर पूर्ण है। एक वही है जो हर जीव से उतना ही प्रेम करता है, जितना जीव उससे करता है। बस हम ही उससे सच्चा प्रेम नहीं करते।_*
