संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण
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वैष्णव-खण्ड [ भूमिवाराहखण्ड या वेंकटाचल-महात्म्य ]
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आकाशगंगा तीर्थ की महिमा – रामानुज पर भगवान् की कृपा तथा भगवद्भक्तों का लक्षण…(भाग 2)
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रामानुज बोले-नारायण ! रमानाथ ! श्रीनिवास ! जगन्मय ! जनार्दन ! जगद्धाम ! गोविन्द ! नरकान्तक! वेंकटाचलशिरोमणे !
मैं आपके दर्शनसे ही कृतार्थ हो गया। धर्मनिष्ठ पुरुष आपको नमस्कार करते हैं; क्योंकि आप धर्मके रक्षक हैं।
जिन्हें महादेवजी और ब्रह्माजी भी नहीं जानते, तीनों वेदोंको भी जिनका ज्ञान नहीं हो पाता, उन्हीं आप परमात्माको आज मैं जान पाया हूँ। इससे अधिक और कौन- सा वरदान हो सकता है?
जिन्हें योगी नहीं देख पाते, केवल कर्मकाण्डीलोग जिनकी झाँकी नहीं कर पाते, उन्हीं आप परमात्माका आज मुझे प्रत्यक्ष दर्शन हो रहा है। इससे बढ़कर और क्या हो सकता है? सम्पूर्ण जगत्के स्वामी वेंकटेश्वर ! मैं इतनेसे ही कृतार्थ हूँ।
जिनके नामका स्मरण करनेमात्रसे बड़े-बड़े पातकी मनुष्य भी मुक्तिको प्राप्त हो जाते हैं, उन्हीं भगवान् जनार्दनका आज मैं प्रत्यक्ष दर्शन करता हूँ। प्रभो! आपके युगल चरणारविन्दोंमें मेरी अविचल भक्ति बनी रहे।
श्रीभगवान्ने कहा- महामते रामानुज ! मुझमें तुम्हारी दृढ़ भक्ति हो। ब्रह्मन् ! मेरी कही हुई दूसरी बात भी सुनो।
जब सूर्य मेषराशिपर जाते हैं, उस समय चित्रा नक्षत्रसे युक्त पूर्णिमा होनेपर जो लोग आकाशगंगामें स्नान करते हैं, वे पुनरावृत्ति- रहित परमधामको प्राप्त होते हैं।
रामानुज ! तुम आकाशगंगाके समीप ही निवास करो। प्रारब्धकर्मके अनुसार प्राप्त हुए इस शरीरका अन्त होनेपर तुम्हें मेरे स्वरूपकी प्राप्ति होगी। इस विषयमें बहुत कहनेकी क्या आवश्यकता है।
आकाशगंगाके शुभ जलमें जो कोई भी स्नान करते हैं, वे सभी उत्तम भगवद्भक्त हो जाते हैं।
क्रमशः…
