संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण
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वैष्णव-खण्ड [ भूमिवाराहखण्ड या वेंकटाचल-महात्म्य ]
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स्वामितीर्थ की महिमा और उसमें स्नान करने से राजा धर्मगुप्त के शापजनित उन्माद का निवारण…(भाग 3)
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रीछकी यह बात सुनकर धर्मगुप्त सो गये। उस समय सिंहने रीछसे कहा- ‘यह राजा तो सो गया है, अब तुम इसे मेरे लिये नीचे गिरा दो।’ तब धर्मज्ञ रीछने सिंहको उत्तर दिया- ‘वनचारी मृगराज ! तुम धर्मको नहीं जानते।
अहो! विश्वासघात करनेवाले प्राणियोंको संसारमें बड़ा कष्ट भोगना पड़ता है। मित्रद्रोहियोंका पाप दस हजार यज्ञोंके अनुष्ठानसे भी नष्ट नहीं होता। ब्रह्महत्या आदि पापोंका तो किसी प्रकार निवारण हो सकता है, परंतु विश्वासघातियोंका पाप कोटिजन्मोंमें भी नष्ट नहीं हो सकता है।”
सिंह! मैं मेरुपर्वत को इस पृथ्वी का बड़ा भारी भार नहीं मानता, संसार में जो विश्वासघाती है, उसीको मैं भूतल का महान् भार समझता हूँ।’
रीछके ऐसा कहनेपर सिंह चुप हो गया। तत्पश्चात् धर्मगुप्त जागे और रीछ वृक्षपर सो गया। तब सिंहने राजासे कहा- ‘इस रीछको नीचे छोड़ दो।’ तब राजाने अपने अंकमें सिर रखकर सोये हुए रीछको पृथ्वीपर ढकेल दिया।
राजाके गिरानेपर रीछ वृक्षकी डाली पकड़ता लटक गया। वह पुण्यवश वृक्षसे नीचे नहीं गिरा। अब वह राजाके पास आकर क्रोधपूर्वक बोला- ‘राजन् ! मैं इच्छानुसार रूप धारण करनेवाला ध्यानकाष्ठ नामक मुनि हूँ।
मेरा जन्म भृगुवंशमें हुआ है। मैंने स्वेच्छासे रीछका रूप धारण किया है। मैंने तुम्हारा कोई अपराध नहीं किया था। फिर सोते समय तुमने मुझे क्यों ढकेला? जाओ, मेरे शापसे बहुत शीघ्र पागल होकर पृथ्वीपर विचरो।’
राजाको इस प्रकार शाप देकर मुनिने सिंहसे कहा- ‘तुम सिंह नहीं, महायक्ष हो। पहले कुबेरके मन्त्री थे। एक दिन अपनी स्त्रीके साथ हिमालयके शिखरपर आकर अनजानमें गौतम मुनिके समीप ही तुम विहार करने लगे थे।
दैवकी प्रेरणासे महर्षि गौतम समिधा लानेके लिये कुटीसे बाहर निकले। उन्होंने तुम्हें नंगा देख इस प्रकार शाप दिया- ‘अरे! तू मेरे आश्रममें आकर नंगा खड़ा है। अतः अभी तू सिंह हो जायगा।’ इस प्रकार तुम्हें सिंहयोनि प्राप्त हुई है।
मृगराज! ये सारी बातें मैं ध्यानसे जानता हूँ।’ ध्यानकाष्ठ मुनिके ऐसा कहनेपर उसने सिंहका रूप त्याग दिया और कुबेर- सचिवके रूपमें दिव्य यक्षका शरीर धारण कर लिया। उसके बाद उसने हाथ जोड़कर कहा- ‘महामुने !
आज मुझे अपने समस्त पूर्ववृत्तान्तका ज्ञान हो गया। गौतमजीने शाप देते समय उसके उद्धारका समय भी इस प्रकार बताया था- ‘जब रीछरूपधारी ध्यानकाष्ठके साथ तुम्हारा वार्तालाप होगा, तब तुम सिंह-देह त्याग करके यक्षरूप धारण कर लोगे।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी

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