संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण
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वैष्णव-खण्ड [ भूमिवाराहखण्ड या वेंकटाचल-महात्म्य ]
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ऋषि बोलेः सूतजी! कृपया स्वामीपुष्करिणी तीर्थ की महिमा का वर्णन करें। सूतजी ने कहाः जो स्वामीतीर्थ में स्नान करते हैं वे हैं तमिस्र, अंधतामिस्त्र, महारौरव, रौरव, कुंभीपाक, कालसूत्र, असिपत्रवन, कृमिभक्ष, अंधकूप, संदंश, शाल्मली, लालभक्ष, अवीचि, सारमेयादान, वज्रकर्णक, क्षारकार्दमपतन, रक्षोगणासन, शूलप्रोटानिरोधन, तिरोधन, सुलिमुख, पूयभक्ष, शोणितभ एक्स और विष अग्नि उत्पीड़न आदि अट्ठाईस नरक में नहीं जाते।
जो दूसरों के धन, बच्चों और पत्नियों को चुराता है,
उसे कई वर्षों तक तमिस्त्र नामक भयानक नरक में डाला जाता है। जो नीच मनुष्य अपने माता-पिता तथा ब्राह्मणों से घृणा करता है, उसे दस हजार योजन चौड़े कालसूत्र नरक में डाला जाता है।
जो कोई भी वेदों के मार्ग का उल्लंघन कर गलत मार्ग पर चलता है, उसे यम के दूत तलवार के पत्तों के भयानक जंगल में फेंक देते हैं। जो मनुष्य मोहवश पंक्ति में खड़े होकर दाल-सब्जी आदि पकवान खाता है और पांच यज्ञों का अनुष्ठान किए बिना खाता है, वह कीड़े खाने वाले नरक में डाला जाता है, जहां सैकड़ों कीड़े उसे खाते हैं और वह भी कीड़े खाकर जीवित रहता है।
कौन ब्राह्मण का धन स्नेह या बल से हड़प लेता है और कौन राजा या राजपुरुष दूसरोंके धनका अपहरण कर लेता है, वह सन्दंश नामक भयंकर नरकमें गिराया जाता है।
जो नीच मानव अगम्या स्त्रीके साथ गमन करता है, अथवा जो नारी अगम्य पुरुषके साथ संगम करती है, वे दोनों क्रमशः लोहेकी तपायी हुई नारी-मूर्ति और पुरुष-मूर्तिका आलिंगन करके तबतक खड़े रहते हैं, जबतक चन्द्रमा और सूर्य की सत्ता रहती है। तत्पश्चात् वे सूचीनामक घोर नरकमें डाले जाते हैं।
जो मनुष्य अनेक प्रयत्नों और उपद्रवोंसे सब प्राणियोंको सताता है, वह बहुत काँटोंवाले भयंकर शाल्मलि नरकमें गिराया जाता है।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
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