संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण
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वैष्णव-खण्ड [ भूमिवाराहखण्ड या वेंकटाचल-महात्म्य ]
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राजा परीक्षित् को ब्राह्मण का शाप, तक्षक के काटने से उनकी मृत्यु तथा उनकी रक्षा न करने के पाप से कलंकित काश्यप ब्राह्मण का स्वामिपुष्करिणी में स्नान करके शुद्ध होना…(भाग 3)
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काश्यप बोले- उत्तम व्रत का पालन करने वाले शाकल्यजी ! मेरे दोष की शान्ति के लिये कोई उपाय बताइये। जिससे मेरे बन्धु-बान्धव और सुहृद् मुझे ग्रहण करें। आप भगवान् के प्रिय भक्त हैं, मुझपर अवश्य कृपा करें।
तब मुनिवर शाकल्य ने क्षणभर ध्यान करके कृपापूर्वक काश्यप से कहा- ब्रह्मन् !
इस पाप की शान्ति के लिये मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूँ। सुवर्णमुखरी नदी के तटपर भगवान् लक्ष्मीपति की निवास भूमि है, उसका नाम वेंकटाचल है, जो सब लोगों में पूजित है। उसका दूसरा नाम शेषाचल भी है। वह परमपवित्र तथा देवता और दानवों से भी वन्दित है।
ब्रह्महत्या, सुरापान तथा सुवर्ण की चोरी आदि बड़े-बड़े पापों का वह नाश करने वाला है। उसी पर्वत पर स्वामिपुष्करिणी है, जो सब पापों का निवारण करने वाली है। वह मंगलदायिनी पुष्करिणी भगवान् श्रीनिवास के स्थान से उत्तर दिशा में है।
तुम वेंकटाचल पर जाकर कल्याणमयी स्वामिपुष्करिणी में संकल्पपूर्वक स्नान करो। फिर पश्चिम तटपर बसे हुए वाराह- स्वामी की सेवा करके भगवान् के मुख्य मन्दिर में जाओ।
वहाँ भक्तों को अभय प्रदान करने वाले शंख-चक्रधारी वनमालाविभूषित स्वर्णाचलनिवासी भगवान् श्रीनिवास का विधिपूर्वक दर्शन करके तुम सब पापों से मुक्त हो जाओगे।
यह सुनकर मुनिवर काश्यप ने देव-दानववन्दित स्वामिपुष्करिणी में नियम पूर्वक स्नान किया। इससे वे शुद्ध और स्वस्थ हो गये। फिर सब बन्धु- बान्धवों ने उनका विधिपूर्वक पूजन करके कहा- ‘आप निःसन्देह हमारे पूज्य हैं।’
ब्राह्मणो ! इस प्रकार मैंने आपलोगों से वेंकटाचल की महिमा का वर्णन किया है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इसे सुनता है, वह विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी