संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण
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उत्कलखण्ड या पुरुषोत्तमक्षेत्र-महात्म्य
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यमराज तथा मार्कण्डेयजी के द्वारा भगवान् की स्तुति और पुरुषोत्तमक्षेत्र की महिमा…(भाग 2)
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यमराज बोले- सृष्टि, पालन और संहार के एकमात्र कारण देवदेवेश्वर ! आपको नमस्कार है। सूत में मणियों की भाँति आपमें यह सब जगत् गुँथा हुआ है।
आपने ही इस विश्व को धारण किया है, आपने ही इसकी सृष्टि की है तथा आपही ने इसका पालन-पोषण भी किया है। चन्द्रमा और सूर्य आदि का रूप धारण करके आप सदा समस्त संसार को प्रकाशित करते हैं।
आप इस विश्व के स्वामी, जगत् की उत्पत्ति के कारण, संसार के आवास स्थान, जगद्गुरु, लोकसाक्षी तथा आदि-अन्त से रहित हैं। आपको मैं प्रणाम करता हूँ। प्रभो! आप उत्तम करुणारूपी जल से भरे हुए समुद्र हैं, आपको नमस्कार है।
आपका वैभव पर, अपर एवं परात्पर से भी अतीत है। आप ही इस विश्व के उत्पादक हैं। संसार के सन्तापरूपी हिम को सुखा डालने वाले सूर्य ! आपको नमस्कार है। दीनबन्धो! आपको नमस्कार है।
आपने अपनी माया से समस्त वैभवों की रचना की है, तीनों गुण आपकी रज्जु (रस्सी) हैं, आपको मेरा नमस्कार है। कमल केसर की भाँति निर्मल पीत वस्त्र धारण करने वाले आपको नमस्कार है।
आपके कटाक्षपातमात्र से ही संसार की सृष्टि, पालन और संहार होते हैं तथा यह ऊँच नीच जगत् बार-बार जन्म लेता है।
नीलाचल की गुफा में निवास करने वाले आप कृपानिधान प्रभु को मैं प्रणाम करता हूँ। आप शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करने वाले तथा सबको शुभ प्रदान कर नेवाले हैं।

शरणागत प्राणियों के समस्त पापों का नाश करने वाले मुरारि को मैं नमस्कार करता हूँ। आपका मनोहर एवं विशाल वक्ष श्रीवत्सचिह्न तथा कौस्तुभमणि से उद्भासित है, आपको नमस्कार है।
आपके युगल चरणारविन्दों का आश्रय लेने से ऐश्वर्यभागिनी लक्ष्मी की सब लोग शरण लेते हैं और वे सबको पृथक् पृथक् ऐश्वर्य देने में समर्थ होती हैं।
वे लक्ष्मी आपकी परा और अपरा प्रकृति हैं। वे समस्त शुभ लक्षणों से लक्षित होती हैं तथा आप लक्ष्मीपति के वक्षःस्थल पर नित्य निवास करती हैं। भगवन्! आपकी प्रिया उन लक्ष्मी को मैं प्रणाम करता हूँ।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी