संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण
वैष्णव-खण्ड [ भूमिवाराहखण्ड या वेंकटाचल-महात्म्य ]
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
घोणतीर्थ का महात्म्य – गन्धर्व पत्नी का उद्धार…(भाग 2)
प्यारी पत्नीने क्रोधपूर्वक उत्तर दिया- ‘आर्यपुत्र! माघके महीनेमें बहुत सर्दी पड़ती है, उस समय प्रातः काल, जब कि सूर्यका तेज बहुत मन्द रहता है, सूर्योदय-कालमें कोई कैसे स्नान करेगा?
माघमें उस समय शीतका अधिक कष्ट रहता है। इसलिये आपके बताये हुए ये सब कार्य मुझसे बार-बार न हो सकेंगे। अतः प्रातः कालमें मैं आपके साथ स्नान नहीं करूँगी।
क्योंकि अधिक सर्दी पड़नेसे यदि मेरी मृत्यु हो गयी, तो उस समय आप मेरी रक्षा नहीं करेंगे।’ पत्नीकी यह बात सुनकर तुम्बुरुने सोचा कि ‘धर्मविरुद्ध चलनेवाले पुत्रको, अप्रिय वचन बोलनेवाली पत्नीको तथा ब्राह्मण एवं ईश्वरको न माननेवाले राजाको तत्काल शापके द्वारा दण्ड देना चाहिये।’
इस नीतिके वचनका विचार करके गन्धर्वने अपनी सती पत्नीको इस प्रकार शाप दिया ‘ओ मूढ़े ! सौ पातकोंका नाश करनेवाले परम पुण्यमय वेंकटाचलपर घोणतीर्थके समीप जो पीपलका वृक्ष है, उसके खोखलेमें तू मेढकी हो जा।’
पतिदेवकी यह बात सुनकर वह गन्धर्ववल्लभा उनके चरणोंमें गिर पड़ी और प्रार्थना करने लगी।
तब तुम्बुरुने उसे शापसे मुक्त होनेकी यह अवधि बतलायी कि अपनी इन्द्रियोंपर विजय पानेवाले परम तपस्वी महाभाग अगस्त्य मुनि जब महातिथि पूर्णिमाको परम उत्तम घोणतीर्थमें जाकर स्नान करेंगे और उसी पीपल वृक्षके समीप बैठकर शिष्योंको घोणतीर्थका माहात्म्य बतलावेंगे,
उस समय पीपलके खोखलेमें ही एकाग्रचित्त होकर जब तुम मोक्षदायक घोणतीर्थका माहात्म्य सुनोगी, तब समस्त पापोंका नाश करके मेरे साथ आ मिलोगी।
क्रमशः…

शेष अगले अंक में जारी