वैष्णव-खण्ड [ भूमिवाराहखण्ड या वेंकटाचल-महात्म्य ]
दान-पात्र-विचार, चक्रतीर्थ की महिमा, पद्मनाभ की तपस्या, भगवान् का वरदान तथा राक्षस के आक्रमण से चक्रद्वारा पद्मनाभ की रक्षा…(भाग 4)
पद्मनाभ बोले- सम्पूर्ण विश्वके संरक्षणकी दीक्षा लेनेवाले विष्णुचक्र ! आपको नमस्कार है। आप भगवान् नारायणके करकमलको विभूषित करनेवाले हैं। आप युद्धमें असुरोंका संहार करनेमें कुशल हैं।
अतिशय गर्जना करनेवाले सुदर्शन ! आप भक्तोंकी पीड़ाका विनाश करते हैं।

आपको नमस्कार है। मैं भयसे उद्विग्न हूँ। आप सब प्रकारके पाप-तापसे मेरी रक्षा कीजिये। स्वामिन् ! सुदर्शन ! प्रभो! संकटसे छुटकारा चाहनेवाले सम्पूर्ण जगत्का हित करनेके लिये आप सदा इस चक्रतीर्थमें निवास करें।
पद्मनाभ ब्राह्मणके ऐसा कहनेपर भगवान् विष्णुके चक्रने अपने स्नेहसे उन्हें तृप्त से करते हुए कहा- ‘पद्मनाभ! यह चक्रतीर्थ अत्यन्त उत्तम और परम पवित्र है। मैं सम्पूर्ण लोकोंका हित करनेके लिये सदा इस तीर्थमें निवास करूँगा।
आपके ऊपर दुरात्मा राक्षसके द्वारा आये हुए संकटका विचार करके भगवान् विष्णुसे प्रेरित होकर मैं शीघ्र यहाँ आ पहुँचा। आपको पीड़ा देनेवाले उस अधम राक्षसको मैंने मार डाला और आपकी उसके भयसे रक्षा की;
क्योंकि आप भगवान्के भक्त हैं। विप्रवर! सब पापोंका हरण करनेवाले इस परम पवित्र चक्रतीर्थमें सब लोगोंकी रक्षाके लिये मैं सदा निवास करूँगा।

मेरे निवास करनेसे यह तीर्थ चक्रतीर्थके नामसे प्रसिद्ध होगा और जो मनुष्य इस मोक्षदायक चक्रतीर्थमें स्नान करेंगे, उन सबके पुत्र, पौत्र आदि वंशज, निष्पाप होकर भगवान् विष्णुके परमधामको प्राप्त होंगे।’ यों कहकर भगवान् विष्णुके चक्रने पद्मनाभ मुनि तथा अन्य ब्राह्मणोंके देखते-देखते सहसा उस | चक्र-सरोवरमें प्रवेश किया। शौनकादि महर्षियो !
इस प्रकार मैंने तुमलोगों से चक्रतीर्थ के माहात्म्य का वर्णन किया। जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर इस अध्यायको पढ़ता या सुनता है उसे चक्रतीर्थमें स्नान करनेका उत्तम फल प्राप्त होता है।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी


