संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण
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वैष्णव-खण्ड [ भूमिवाराहखण्ड या वेंकटाचल-महात्म्य ]
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दान-पात्र-विचार, चक्रतीर्थ की महिमा, पद्मनाभ की तपस्या, भगवान् का वरदान तथा राक्षस के आक्रमण से चक्रद्वारा पद्मनाभ की रक्षा…(भाग 3)
चक्रतीर्थनिवासी पद्मनाभ मुनिके द्वारा इस प्रकार स्तुति की जानेपर परम ऐश्वर्यशाली, विश्वरूप, दयानिधान वेंकटनाथ भगवान् श्रीनिवासजी बहुत सन्तुष्ट हुए और बोले- ‘महाभाग ! तुम मेरे चरणारविन्दोंके पूजक हो।
द्विजश्रेष्ठ ! इस चक्रतीर्थतटपर मेरी पूजा करते हुए तुम एक कल्प निवास करो।’ ऐसा कहकर भगवान् वहीं अन्तर्धान हो गये। तबसे परम बुद्धिमान् पद्मनाभ मुनि चक्रतीर्थके किनारे निवास करने लगे। कुछ कालके पश्चात् वहाँ एक भयंकर राक्षस आया।
वह क्रूर क्षुधासे पीड़ित होकर नारायणपरायण पद्मनाभ मुनिको अपना ग्रास बनाना चाहता था। उसने बड़े वेगसे ब्राह्मणको पकड़ लिया। तब उन्होंने शरणागतोंके रक्षक दयासागर चक्रपाणि श्रीनारायणको पुकारा और बार-बार ऐसा कहा- ‘

प्रभो! रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये, हे वेंकटेश ! हे दयासिन्धो! हे शरणागतपालक ! हे पुरुषसिंह! मैं राक्षसके वशमें आ गया हूँ। मेरी रक्षा कीजिये। हे लक्ष्मीकान्त ! हे दुःखहारी हरि! हे विष्णुदेव ! हे वैकुण्ठनाथ ! हे गरुड़ध्वज !
आपने ग्राहके चंगुलमें फँसे हुए गजराजकी जिस प्रकार रक्षा की थी उसी प्रकार राक्षसके आक्रमणसे दबे हुए मुझ भक्तकी रक्षा कीजिये।
हे दामोदर! हे जगन्नाथ! हे हिरण्यकशिपु दैत्यका मर्दन करनेवाले नृसिंह! प्रह्लादजीकी भाँति मैं भी राक्षसके द्वारा अत्यन्त पीड़ित हूँ; अतः उन्हींके समान आप मेरी भी रक्षा कीजिये।’
पद्मनाभ के इस प्रकार स्तुति करनेपर अपने भक्तके ऊपर भय आया हुआ जानकर दयानिधान चक्रपाणिने भक्तकी रक्षाके लिये अपने चक्रको भेजा।
भगवान्का वह चक्र बड़े वेगसे चक्रतीर्थके तटपर आया। वह अनन्त सूर्यके समान तेजस्वी तथा अनन्त अग्निके समान ज्वालामालाओंसे प्रज्वलित था। उससे बड़े जोरकी गड़गड़ाहट हो रही थी।
बड़े-बड़े असुरोंका संहार करनेवाले उस सुदर्शन चक्रको देखकर राक्षस भागा, परंतु सुदर्शनने सहसा पास पहुँचकर उसका मस्तक काट डाला। राक्षस को पृथ्वी पर पड़ा हुआ देख विप्रवर पद्मनाभ मुनि अत्यन्त प्रसन्न हो सुदर्शन चक्रकी स्तुति करने लगे।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी