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श्री शिव महापुराण-श्रीकैलाश संहिता (प्रथम खंड)-इक्कीसवां अध्याय - Sanatan-Forever

श्री शिव महापुराण-श्रीकैलाश संहिता (प्रथम खंड)-इक्कीसवां अध्याय

श्री शिव महापुराण-श्रीकैलाश संहिता (प्रथम खंड)-इक्कीसवां अध्याय

श्री शिव महापुराण-श्रीकैलाश संहिता (प्रथम खंड)-इक्कीसवां अध्याय

श्री शिव महापुराण

श्रीकैलाश संहिता (प्रथम खंड)

इक्कीसवां अध्याय

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योगियों को उत्तरायण प्राप्ति… (भाग 1)

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मुनि वामदेव बोले- हे भगवान स्कंद जी! मैंने सुना है कि योगियों का दाह कर्म नहीं किया जाता। उन्हें तो शुद्ध भूमि में स्थापित कर दिया जाता है। क्या यह सच है? तब मुनिवर के प्रश्न का उत्तर देते हुए असुर-निकंदन स्कंद जी बोले- हे मुनिवर ! यह प्रश्न एक बार महान शिव योगी भृगु ने स्वयं सर्वज्ञ त्रिलोकीनाथ भगवान शिव से किया था। उस समय जो शिवजी ने बताया था वही मैं तुम्हें बताता हूं।

यह परम ज्ञान सब साधारण मनुष्यों के लिए नहीं है। इस ज्ञान को शांतचित्त वाले परम शिवभक्त शिष्य को ही बताना चाहिए क्योंकि महा धैर्यवान योगीजन ही समाधि अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं और वे ही शिवरूप से परिपूर्ण होते हैं। परंतु जो योगी-मुनि अपने चित्त अर्थात मन को स्थिर करने में असमर्थ होते हैं और जल्द ही अधीर हो उठते हैं, जिन्हें समाधि की अवस्था का ज्ञान प्राप्त नहीं है, ऐसे योगियों को गुरु मुख से शिवजी का ज्ञान जानकर ध्यान करना चाहिए। प्रतिदिन प्रणव मंत्र का जाप करें और भगवान शिव का स्मरण करें। तभी योगीजनों को उत्तरायण की प्राप्ति होती है।

क्रमशः शेष अगले अंक में…

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