श्री शिव महापुराण
श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)
(अट्ठाईसवां अध्याय)
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छाया पुरुष का वर्णन… (भाग 1)
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श्री पार्वती जी शिवजी से पूछने लगीं कि भगवन्! आपने मुझे काल और वचन का वर्णन किया, अब मुझे छाया पुरुष के श्रेष्ठ ज्ञान को बताइए। भगवान शिव बोले- श्वेत वस्त्र धारण करके धूप दीप प्रज्वलित करके ‘ॐ नमः भगवते रुद्राय’ नामक बारह अक्षरों के मंत्र का जाप करते समय जब मनुष्य को अपनी छाया दिखाई देने लगे तो उसे ब्रह्म की प्राप्ति होती है।
यदि ऐसी छाया बिना सिर के दिखाई दे तो छः महीने में मृत्यु हो जाती है। शुक्लवर्ण होने पर धर्म वृद्धि होती है, कृष्ण वर्ण पाप, रक्त वर्ण पर बंधन, पीत पर शत्रु का भय होता है।
यदि नाक कटी दिखे तो विवाह बंधु मृत्यु, भूख का डर होता है। इस प्रकार जब मनुष्य को छाया पुरुष दिखाई दे, तो उसे नवाक्षर मंत्र का मन में जाप करना चाहिए। इस प्रकार एक वर्ष तक इसे जपने से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
अब मैं तुम्हें एक गुप्त विद्या के बारे में बताता हूं। यह विद्या ब्राह्मणों के सिर पर विद्यमान होती है। यह विद्या सभी विद्याओं की माता कहलाती है। वेद भी प्रतिदिन इसकी स्तुति करते हैं। इस विद्या को खेचरी नाम से जाना जाता है।
यह विद्या अदृश्या, दृश्या, चला, नित्या, व्यक्ता, अव्यक्ता और सनातनी कहलाती है। यह वर्ण रहित, वर्ण सहित बिंदु मालिनी है। इस विद्या का दर्शन करने वाले योगी का जन्म सफल हो जाता है।
इसलिए योगीजनों को अपने ज्ञान और विद्याओं का नित्य अभ्यास करना चाहिए। अभ्यास से सभी सिद्धियां सिद्ध होती हैं।
क्रमशः शेष अगले अंक में…
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🔅🔆🚩चिंतन प्रवाह🚩🔆🔅
मृत्यु अटल है, फिर भी हर व्यक्ति अमर रहने की चाह रखता है। महाभारत का निम्न श्लोक इस वृत्ति का यथार्थ वर्णन करता है-
अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम् ।
शेषाः स्थावरमिच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम्।।
अर्थात यहां इस लोक से जीवधारी प्रतिदिन यमलोक को प्रस्थान करते हैं, यानी एक-एक कर सभी की मृत्यु देखी जाती है, फिर भी जो यहां बचे रह जाते हैं वे सदा के लिए यहीं टिके रहने की आशा करते हैं। इससे बड़ा आश्चर्य भला क्या हो सकता है ? तात्पर्य यह है कि जिसका भी जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु अवश्यंभावी है और उस मृत्यु के साक्षात्कार के लिए सभी को प्रस्तुत रहना चाहिए।
गङ्गादितीर्थेषु वसन्ति मत्स्याः
देवालये पक्षिगणाश्च सन्ति।
भावोज्झितास्ते न फलं लभन्ते
तीर्थाच्च देवायतनाच्च मुख्यात्।।
भावं ततो हृत्कमले निधाय
तीर्थानि सेवेत समाहितात्मा।।
(नारदपुराणम्)
अर्थात् 👉 गंगा आदि तीर्थों में मछलियां निवास करती हैं, देव-मन्दिरों में पक्षिगण निवास करते हैं, किन्तु उनके चित्त भक्ति-भाव से रहित होने के कारण उन्हें तीर्थसेवन और देवमन्दिर में निवास करने से कोई फल नहीं मिलता। अतः हृदय-कमल में भाव का संग्रह करके एकाग्र-चित्त होकर तीर्थसेवन करना चाहिए।
🙏मंगलमय दिवस की शुभकामनाएं🙏
