श्री शिव महापुराण
श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)
(छब्बीसवां अध्याय)
काल-चक्र निवारण का उपाय… (भाग 1)
देवी पार्वती बोलीं- हे नाथ! आपने कालचक्र का वर्णन मुझे सुनाया। हे देवाधिदेव ! अब कृपा करके इससे बचाव का उपाय भी मुझे बताइए। अपनी प्राण वल्लभा के इस प्रकार के प्रश्न को सुनकर त्रिलोकीनाथ भगवान शिव बोले- देवी उमे! पृथ्वी, जल, तेज, पवन और आकाश आदि पांच तत्वों के संयोग से इस भौतिक शरीर की उत्पत्ति होती है। आकाश सर्वव्यापक है और सब वस्तुएं उसी में लीन हो जाती हैं। एक बार मैंने क्रोधवश काल को जला दिया था। जब-जब मैं स्तुतियों द्वारा प्रसन्न हुआ तब काल पुनः प्रकृति में स्थिर हो गया।
आकाश से वायु, वायु से तेज, तेज से जल, जल से पृथ्वी की उत्पत्ति होती है। जल के चार, तेज के तीन, वायु के दो और आकाश का एक गुण है। शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध आदि पांच भूत, जब शरीर को त्याग देते हैं, तभी प्राणी की मृत्यु होती है और जब ये पाचों भूत शरीर को ग्रहण करते हैं तो प्राणी की उत्पत्ति होती है। काल को जीतने वाले योगीगण इन गुणों का ध्यान करते हैं।
देवी पार्वती ने कहा- हे नाथ! काल पर विजय पाने के लिए योगीजन जिस यंत्र का ध्यान या अभ्यास करते हैं, उसके विषय में बताइए। पार्वती जी के इस प्रश्न को सुनकर देवाधिदेव शिवजी बोले- देवी! रात्रि के अंधकार में जब पूरा जगत गहरी नींद में सो रहा हो, उस समय बैठकर योग करें। आसन पर बैठकर अपनी तर्जनी अंगुलियों से दोनों कानों को बंद कर लें। इस प्रकार प्रतिदिन यही साधना करें। जब यह साधना इतनी कठोर हो जाए कि दो पहर इसी आसन में बीतें तथा उसके बाद अग्नि द्वारा प्रेरित शब्द या नाद सुनाई दे, उस समय मनुष्य को इच्छानुसार मृत्यु प्राप्त हो जाती है। यह शब्द या नाद ब्रह्मरूप है, जो सुख तथा मुक्ति को देने वाला है। इस नाद ध्वनि या शब्द को सांसारिक मोह-माया में लिप्त लोग भला कैसे जान पाएंगे?
जिन उत्तम मनुष्यों को इसका ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं। उन्हें तत्वज्ञान व मुक्ति व मुक्ति की प्राप्ति होती है। यह नाद अनाहत है, जिसका उच्चारण नहीं किया जा सकता। योगीजन अपने प्रयत्न एवं ध्यान द्वारा इसे प्राप्त करते हैं। वे पापों से दूर होकर मृत्यु पर विजय पा लेते हैं। उसी से मृत्यु पर विजय प्रदान करने वाला शब्द उत्पन्न होता है। घोष, कांस्य, श्रंग, घण्टा, वीणा, वंशज, दुंदुभि, शंखनाद व मेघ गर्जित नामक इन नौ शब्दों का ध्यान करने वाले ज्ञानियों एवं योगीजनों पर कभी कोई विपत्ति नहीं आती। इसी प्रकार एकाग्रचित्त होकर नियमपूर्वक तुकांग शब्द की स्तुति और ध्यान करने वाले मनुष्यों के लिए कुछ भी असाध्य नहीं होता। उसकी हर कामना की सिद्धि होती है और अभीष्ट फल मिलता है।
क्रमशः शेष अगले अंक में…
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