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श्री शिव महापुराण-श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)-(अध्याय सत्रह) - Sanatan-Forever

श्री शिव महापुराण-श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)-(अध्याय सत्रह)

श्री शिव महापुराण,श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)

श्री शिव महापुराण

श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)

(अध्याय सत्रह)

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जंबू द्वीप वर्ष का वर्णन… (भाग 1)

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सनत्कुमार जी बोले- हे व्यास जी ! अब मैं आपको भूमंडल के सात द्वीपों के विषय में बताता हूं।

जंबू, प्लक्षु, शालमलि, कुश, क्रौंच, शाक, पुष्कर ये सात महाद्वीप हैं। इन द्वीपों के चारों ओर सात समुद्र हैं।

ये सातों समुद्र जल, ईख, क्षीर, केसर, मद्य, घी, दूध और दही से भरे हैं। इन द्वीपों के बीच में सुमेरु पर्वत है। सुमेरु के दक्षिण में निषध, हिमाचल, हेमकूट पर्वत हैं। दक्षिण में हरि, उत्तर में रम्यक है। वही हिरण्मय है।

इसके बीच में इलावृत्त है जिसके बीच में मेरु पर्वत स्थित है। मेरु पर्वत के पूर्व दिशा में मंदिर, दक्षिण दिशा में गंधमादन, पश्चिम दिशा में विपुल एवं उत्तर दिशा में सुपार्श्व शिखर स्थित हैं। इनके ऊपर कदंब, जामुन, पीपल आदि वृक्ष हमेशा ही पाए जाते हैं।

जंबू द्वीप में जामुन के पेड़ों से बड़े-बड़े फल गिरते हैं। इसके फलों का रस धारा के रूप में बहता हुआ जंबू नदी के नाम से जाना जाता है। मेरु के पूर्व में भद्राश्व, पश्चिम में केतुमाल तथा इसके बीच में इलावृत्त है।

पूर्व में चैत्र रथ, दक्षिण में गंधमादन, पश्चिम में विभ्राज्य, उत्तर में नंदन वन है। यहीं पर अरुणोद, महाभद्र, शीतोद और मानस नामक सरोवर हैं। मेरु पर्वत के पूर्व में कुरुंग, शीताज्जन, कुररहा, माल्यवान आदि पर्वत हैं।

दक्षिण में शिखिर, चित्रकूट, पलंग, रुचक, निषध, कपिल नामक पर्वत हैं। पश्चिम दिशा में सिनी वास, कुशुंभ, कपिल, नारद, नाग आदि स्थित हैं। उत्तर दिशा में शंखचूर्ण, ऋषभ, हंस, काल, जरा और केशराचल आदि पर्वत स्थित हैं।

सुमेरु नामक पर्वत पर ब्रह्मा की शातकोणपुरी विद्यमान हैं। शातकोणपुरी के पास ही अमरावती, तेजोवती, संयमनी, कृष्णांगना, श्रद्धावती, गंधवती, यशोवती नामक आठ पुरियां हैं।

शतकोणपुरी के बीच में पतित पावनी गंगा नदी चंद्र मण्डल को भेदकर, सीता, अलकनंदा, चक्षु एवं भद्र धाराओं में बंट जाती है। सीता पूर्व दिशा से, अलकनंदा दक्षिण से, चक्षु पश्चिम से तथा भद्रा उत्तर दिशा में बहती हुई महासागर में गिरती हैं।

सुनील, माल्यवान, निषद, गंधमादन आदि पर्वत सुमेरु पर्वत के चारों ओर खिली हुई कलियों के समान हैं। इसी प्रकार केतुमाल, भद्राश्च, कुश्व, मर्यादा, लोक पर्वत लोकपदम भारत के चारों ओर पत्तों की तरह खड़े हैं।

देवकूट पर्वत पर केवल धर्मात्मा पुरुष ही रह सकते हैं। वहां पापी मनुष्य नहीं जा सकते। यहां पर रोग, शोक, कष्ट नहीं सताते और वे बारह हजार वर्ष की आयु पाते हैं।

क्रमशः शेष अगले अंक में…

श्री शिव महापुराण,श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)
श्री शिव महापुराण,श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)

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