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श्री शिव महापुराण-श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड) - Sanatan-Forever

श्री शिव महापुराण-श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)

श्री शिव महापुराण,श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)

श्री शिव महापुराण श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)

(सोलहवां अध्याय)
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शिव स्मरण द्वारा नरकों से मुक्ति… (भाग 1)
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सनत्कुमार जी बोले- हे महामुने ! इन्हीं लोकों में सबसे ऊंचे हिस्से में रौरव, शंकर, शूकर, महाज्वाला, तप्त कुंड, लवण, वैतरणी नदी, कृमि-कृमि, भोजन, कठिन, असिपत्र वन, बालाभक्ष्य, दारुण, संदेश कालसूत्र, महारौरव, शालमलि आदि नाम के बड़े ही दुखदायी और कष्टकारक नरक हैं। इन नरकों में आकर पापी मनुष्य की आत्मा अनेक यातनाएं भोगती है। जो ब्राह्मण असत्य के मार्ग पर चलता है, उसे रौरव नामक नरक को भोगना पड़ता है।

चोरी करने वाला, दूसरे को धोखा देने वाला, शराब पीने वाला, गुरु की हत्या करने वाले पापी कुंभी नरक में जाते हैं। बहन, कन्या, माता, गाय व स्त्री को बेचने वाला और ब्याज खाने वाले पापी तप्तेलोह नरक के वासी होते हैं। गाय की हत्या करने वाले देवता और पितरों से बैर रखने वाले मनुष्य कृमिभक्ष नरक को भोगते हैं। इस नरक में उन्हें कीड़े खाते हैं।

पितरों और ब्राह्मणों को भोजन न देने वालों को लाल भक्ष नरक को भोगना पड़ता है। नीच व पापियों का साथ करने वाले, अभक्ष्य वस्तु खाने वाले एवं बिना घी के हवन करने वाले रुधिरोध नरक में जाते हैं।

युवा अवस्था में मर्यादाओं को तोड़ने वाले, शराब व अन्य नशा करने वाले, स्त्रियों की कमाई खाने वाले कृत्य नरक में जाते हैं। वृक्षों को अकारण काटने वाले असिपत्र नरक में, मृगों का शिकार करने वाले ज्वाला नरक में जाते हैं। दूसरों के घर में आग लगाने वाले श्वपाक नरक में तथा अपनी संतान को पढ़ाई से वंचित रखने वाले श्वभोजन नरक में अपने पापों को भोगते हैं।

मनुष्य को अपने शरीर एवं वाणी द्वारा किए गए पापों का प्रायश्चित अवश्य करना पड़ता है। बड़े से बड़े पापों का प्रायश्चित त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का स्मरण करके किया जा सकता है। पाप, पुण्य, स्वर्ग, नरक ये सब कारण हैं। असल में सुख-दुख सब मन की कल्पनाएं हैं। परम ब्रह्म को पहचानकर उसका पूजन करना ही ज्ञान का सार है।

क्रमशः शेष अगले अंक में…
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श्री शिव महापुराण,श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)
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