श्री शिव महापुराण
श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)
(पंद्रहवा अध्याय)
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सनत्कुमार जी बोले- हे व्यास जी !
अब मैं आपको ब्रह्माण्ड के विषय में बताता हूं।
यह ब्रह्माण्ड जल के बीच में स्थित है और त्रिलोकीनाथ भगवान शिव के अंश शेषनाग ने इसे अपने फन पर धारण कर रखा है एवं श्रीहरि विष्णु इसका पालन करते हैं।
सभी देवता और ऋषि-मुनि, साधु-संत सृष्टि के कल्याण हेतु शेषनाग का प्रतिदिन पूजन करते हैं। इन्हीं शेषनाग को अनंत नाम से भी जाना जाता है।
आप अनेकों गुणों से संपन्न हैं और आपकी कीर्ति का गुणगान सभी देवताओं सहित सारे ग्रह और नक्षत्र भी निरंतर करते हैं। नाग कन्याएं सदैव आपकी पूजा और आराधना करती रहती हैं।
इन्हीं के संकर्षण रूप रुद्रदेव हैं। शेषनाग के बल और स्वरूप को स्वयं देवता भी भली-भांति नहीं जानते तो फिर साधारण पुरुष भला कैसे जान सकते हैं?
पृथ्वी के निचले भाग में अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, पाताल आदि कुल सात लोक हैं जो कि दस-दस हजार योजन लंबे और चौड़े तथा बीस-बीस हजार योजन ऊंचे हैं।
इन सबकी रत्न, स्वर्ण की पृथ्वी एवं आंगन है। इसी स्थान पर दैत्य महानाग रहते हैं। सूर्य द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली धूप तथा प्रकाश, चंद्रमा की शीतलता एवं चांदनी सिर्फ पृथ्वी लोक को आलोकित करती है।
यहीं पर सर्दी, गरमी और वर्षा नामक अनेक ऋतुएं होती हैं। इस प्रकार पाताल लोक में सभी प्रकार के सुख विद्यमान हैं जो कि जीवों की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में पूर्णतः सक्षम हैं।
धरा में जल के अनगिनत स्रोत हैं जो कि अपने स्वच्छ और निर्मल जल से जीवों की प्यास बुझाते हैं। भैरे यहां पर सदा गुंजार करते हैं। यहां पर अनेक सुंदर अप्सराएं नृत्य करती हैं और गाना गाती हैं।
पाताल लोक में अनेक प्रकार के वैभव और विलास उपलब्ध हैं और यहां पर अनेक सिद्ध मनुष्य, दानव और नाग अपने द्वारा की गई तपस्या के उत्तम फल को भोगते हैं।
