श्री शिव महापुराण
श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)
(अड़तीसवां अध्याय)
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सगर तक राजाओं का वर्णन… (भाग 1)
सूत जी बोले-ऋषिगण ! सत्यव्रत ने विश्वामित्र की पत्नी और पुत्र का पालन पोषण किया।
एक दिन की बात है राजकुमार ने मांस खाने की जिद की। तब सत्यव्रत ने महर्षि वशिष्ठ की एक गाय को मारा और तीनों ने उसे खा लिया। जब महर्षि वशिष्ठ को पता चला तो वे बहुत क्रोधित हुए।
उन्होंने सत्यव्रत को त्रिशंकु होने का शाप दे दिया। इधर, जब विश्वामित्र लौटे, तो उन्हें पता चला कि उनकी अनुपस्थिति में सत्यव्रत ने ही उनके पुत्र और पत्नी का ध्यान रखा, तो वे बहुत प्रसन्न हुए।
महर्षि विश्वामित्र ने सत्यव्रत के पिता का राज्य उसे दिला दिया। यज्ञ द्वारा उसे सीधे स्वर्ग पहुंचा दिया।

सत्यव्रत की पत्नी सत्यरथा थी और उनके पुत्र हरिश्चंद्र राजा हुऐ। उनके पुत्र रोहित, रोहित के पुत्र वृक और वृक के पुत्र बाहू हुए। राजा बाहू ने ऋषि और्व के आश्रम में तालजंघाओं से रक्षा पाई थी।
इसी जगह जहर सहित पुत्र पैदा हुआ। उसका नाम सगर था। सगर ने भार्गव ऋषि से आग्नेय नामक अस्त्र की शिक्षा ग्रहण की थी।
उसने हैहय, तालजंघाओं को मारकर पूरी पृथ्वी पर विजय प्राप्त की। तत्पश्चात शकवल्टूक, पारद, तगण, खश, नामो आदि देशों में धर्म स्थापन किया।
उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया और संस्कार द्वारा घोड़े को पवित्र कर छोड़ दिया। तब देवराज इंद्र ने घोड़े को पाताल में छिपा दिया। सगर पुत्रों ने घोड़े की तलाश में उस स्थान की खुदाई की। खुदाई करते-करते वे कपिल जी के आश्रम में पहुंच गए।
उनके शोर से कपिल मुनि ने आंखें खोलीं। उनकी आंखों के तेज की अग्नि से साठ हजार सगर पुत्र भस्म हो गए। इनमें हर्ष, केतु, सुकेतु, धर्मरथ और शूरवीर पंचजन ही उस क्रोधाग्नि से बच पाए। इन्हीं के द्वारा सगर वंश आगे बढ़ा।

क्रमशः शेष अगले अंक में…