श्री शिव महापुराण
श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)
(बत्तीसवां अध्याय)
कश्यप वंश का वर्णन… (भाग 1)


सूत जी बोले-अदिति, दिति, सुरसा, अरिष्ठा, इला, दनु, सुरभि, विनीता, ताब्रा, क्रोध, वशी, कद्र आदि कश्यप ऋषि की पत्नियां थीं। मन्वंतर में तुषिता नामक बारह देवता अदिति से उत्पन्न हुए। इनकी उत्पत्ति लोकहित के लिए ही हुई थी। दक्ष कन्या से ही विष्णुजी व इंद्रदेव की भी उत्पत्ति हुई।
सोम की सत्ताईस पत्नियां थीं। उनके अरिष्टनेमि नामक सोलह पुत्र एवं एक कन्या हुई। कुशाश्व का देव प्रहरण नामक पुत्र हुआ। स्वधा तथा सती इनकी दो पत्नियां थीं। स्वधा से पितर व सती से अंगिरा पैदा हुए।
कश्यप जी को दिति से हिरण्यकशिपु तथा हिरण्याक्ष पुत्र प्राप्त हुए। विप्रचित्ति द्वारा सिंहा कन्या हुई। हिरण्यकशिपु को अनुह्लाद, व्रह्लाद, सव्लाद एवं प्रह्लाद नामक चार पुत्र प्राप्त हुए। प्रह्लाद भगवान के परम भक्त थे।
हिरण्याक्ष के कुकर, शकुनि, महानाद, विक्रांत एवं काल नामक पांच पुत्र हुए।

अयोमुख, शंबर, कपाल, वामन, वैश्वानर, पुलोमा, विद्रवण, महाशिर, स्वर्भानु, वृषपर्वा, विप्रचित्ति की प्रभा कन्याएं हुई। वैश्वानर की पुलोम और पुलोमक कन्याओं का विवाह मरीचि से हुआ जिनसे उन्हें दानवों की प्राप्ति हुई।
राहू, शल्प, सुबलि, बल, महाबल, बातपि, नमुचि, इल्वल, स्वसृप, ओजन, नरक, कालनाम, शरमाण, शर कल्प आदि इनके वंशवर्द्धक हुए। विनिता से गरुण एवं अरुण पैदा हुए। सुरसा से अत्यंत तेजस्वी एवं परम ज्ञानी सर्पों की उत्पत्ति हुई।
इसी प्रकार क्रोधवशा के बहुत से गण हुए। सुरभ से शशा एवं भैंसा, झला से बैल एवं वृक्ष, शशि से यक्ष, राक्षस, अप्सरा व मुनिगण तथा अरिष्ठा से मनुष्य एवं सर्प उत्पन्न हुए। इस प्रकार मैंने आपको कश्यप जी के वंश में उत्पन्न पुत्र एवं पौत्रों का वर्णन किया।

