श्री शिव महापुराण
श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)
(ईकतीसवां अध्याय)
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मैथुनी सृष्टि वर्णन… (भाग 1)
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शौनक जी बोले- हे सूत जी! कृपा करके मुझे देव, दानव, गंधर्व, राक्षस और सर्पों आदि के बारे में बताइए। यह सुनकर सूत जी बोले- जब ब्रह्माजी द्वारा निर्मित सृष्टि का प्रजापति द्वारा विकास नहीं हुआ तब वीरसा ने अपनी कन्या का विवाह धर्म से कर दिया और मैथुनी- सृष्टि का आरंभ हुआ। प्रजापति दक्ष के पांच हजार पुत्र नारद जी के उपदेश का अनुसरण करते हुए ज्ञान की तलाश में घर छोड़कर चले गए और फिर कभी नहीं लौटे। इसी कारण दुखी दक्ष ने देवर्षि नारद को शाप दिया था।
तत्पश्चात प्रजापति दक्ष ने अट्ठावन कन्याएं उत्पन्न कीं और उनका विवाह कश्यप, चंद्रमा, अरिष्टनेम, कृशाश्व, अंगिरा से कर दिया। जिनसे इन्हें विश्व से विश्व देवता, संध्या से साध्य, मरुवती से मरुत्वान, वसु से आठ वसु, भानु से बारह भानु, मुहूर्तज, लंबा से घोस, यामि से नाग, वीथी एवं अरुंधती से पृथ्वी उत्पन्न हुए। संकल्पा से संकल्प, वसु से अय, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूषा, प्रभाष ये आठ पुत्र पैदा हुए।
आठवें वसु प्रभा से विश्वकर्मा प्रजापति की उत्पत्ति हुई। वे शिल्प कला में निपुण थे। विश्वकर्मा देवताओं के लिए आभूषण, विमान, घर एवं अनेक वस्तुएं उनकी इच्छानुसार बनाया करते थे। इसी कारण विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पी कहलाए। रैवत अज, भीम, भव, उग्र, बाम, वृष, कपि, अजैकपाद, अहिर्बुघ्न, बहुरूप एवं महान ये ग्यारह रुद्र प्रधान हैं। वैसे तो सरूपा के अनेकों पुत्र हुए और उनसे पैदा हुए रुद्रों की संख्या करोड़ों में है परंतु इन्हीं ग्यारह रुद्रों को ही मुख्य माना जाता है। ग्यारह रुद्र संसार के स्वामी भी कहे जाते हैं।
क्रमशः शेष अगले अंक में…