श्री शिव महापुराण
श्रीवायवीय संहिता (पूर्वार्द्ध)
उन्नीसवां अध्याय
वीरगण का यज्ञ में जाना… (भाग 1)
ऋषिगण बोले- हे वायुदेव ! प्रजापति दक्ष तो धर्म के कार्य में लगकर महायज्ञ कर रहे थे। फिर भगवान शिव ने उनका यज्ञ क्यों भंग किया? कृपा कर इस कथा को बताइए। तब ऋषिगणों की जिज्ञासा शांत करने के लिए वायुदेव बोले- हे ऋषियो ! गिरिराज हिमालय की तपस्या के फलस्वरूप देवी जगदंबा ने उनके घर में जन्म लिया और श्री पार्वती का विवाह भगवान शिव से हो गया।
प्रजापति दक्ष ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में वसु, मरुद्गण, अश्विनी कुमार, पितर, आदित्य, विष्णु आदि सभी देवता एवं ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया परंतु भगवान शिव को नहीं बुलाया। जब परम शिव भक्त दधीचि ने उस यज्ञ में शिवजी को उपस्थित नहीं देखा, तब उन्हें ज्ञात हुआ कि शिवजी को निमंत्रित नहीं किया गया है। वे क्रोधित होकर बोले- इस यज्ञ में जगत के स्वामी भगवान शिव को क्यों आमंत्रित नहीं किया गया? वह पूजनीयों के भी पूजनीय हैं। फिर तुम उनका पूजन क्यों नहीं कर रहे हो?

दधीचि ऋषि के इन वचनों को सुनकर दक्ष बोले- हे ब्रह्मर्षे! यहां ग्यारह रुद्र तो उपस्थित हैं और अन्य रुद्रों को हम नहीं जानते। इस यज्ञ के अधिष्ठाता श्रीहरि विष्णु हैं। तब क्रोधित दधीचि यज्ञ को छोड़कर चले गए। उधर भगवान शिव ने यह जानकर कि उनकी प्राणवल्लभा का यज्ञ में अपमान हो रहा है, वीरभद्र नामक गण को उत्पन्न किया। वीरभद्र हाथ जोड़कर शिवजी को प्रणाम करके उनकी स्तुति करते हुए बोला- हे देवाधिदेव! मेरे लिए क्या आज्ञा है?
भगवान शिव ने उसे आदेश देते हुए कहा- हे वीरभद्र ! तुम अपने योद्धाओं के साथ प्रजापति दक्ष के यज्ञ में जाओ और यज्ञ का विध्वंस कर दो। फिर दक्ष को भी नष्ट कर देना। देवाधिदेव की यह आज्ञा पाकर वीरभद्र ने अपने शरीर से हजारों-करोड़ों गण उत्पन्न किए। फिर आनंदपूर्वक यज्ञ का विध्वंस करने के लिए सेना सहित चल पड़ा।
क्रमशः शेष अगले अंक में…
