
वैशाख की कहानियाँ {“इल्ली और घुन की कहानी”}
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एक इल्ली और घुन था। इल्ली बोली आओ घुन वैशाख स्नान करे, घुन बोला तू ही वैशाख स्नान कर ले। मैं तो नही करूँगा। बाद में इल्ली तो राजा की लडकी के पल्ले के लगकर वैशाख स्नान करती। घुन ने वैशाख स्नान नहीं किया। दोनों मर गये। बाद में इल्ली के वैशाख स्नान के पुण्य के कारण राजा के घर जन्म हुआ और घुन राजा के घर गधा बन गया।
राजा ने बेटी का विवाह किया। बेटी ससुराल जाने लगी तो उसने अपनी पालकी रुकवाई और राजा से कहा यह गधा मुझे चाहिए। तब राजा ने कहा यह मत ले चाहे और धन दौलत ले ले पर लडकी नही मानी। मुझे तो यही चाहिए। गधे को रथ के बांध दिया तो गधा दौड़ने लगा। महल में पहुँचने पर गधे को महल के नीचे बांध दिया।
जब लडकी नीचे उतरती तो गधा कहता मुझे पानी पिलादे तब लडकी ने कहा मैंने पहले ही कहा था वैशाख स्नान कर ले पर तूने कहा था मैं तो बाजरा खाऊँगा और ठंडा-ठंडा पानी पीऊँगा। उनको बातें करते राजा ने सुन लिया, जब राजा ने कहा कि आप मुझे सारी बात बताओ तब रानी (लडकी) ने राजा को सारी बात बताई कि मैं पिछले जन्म में इल्ली थी और ये घुन था।
तब मैंने कहा तू भी वैशाख नहा ले पर वह नहीं नहाया। मैं वैशाख स्नान के पुण्य से राजा के घर लड़की हुई और आपके घर में राज पाठ कर रही हूँ। तब राजा ने कहा कि वैशाख स्नान का इतना पुण्य है तो हम दोनों जोड़े से नहायेंगे। रानी-राजा ने अत्यंत प्रसन्न मन से वैशाख स्नान कर दोनों ने दान–पुण्य किया और सारी नगरी में कहलवा दिया की सब वैशाख स्नान कर नहाया हुआ पानी घुन पे डालेगे जिससे घुन की मोक्ष हुई।
हे ! वैशाख भगवान श्रीहरि विष्णु जैसा सुख इल्ली को दिया वैसा सबको देना।
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