लेमनचूस
महंगे महंगे चॉकलेट के इस दौर में आज भी जब याद आता है₹1 में आने वाले 20 रंग-बिरंगे नींबू के फांक वाले लेमन चूस।
इंसान की जब यादें बननी शुरू होती है तो दिमाग बोध होता है जैसे-जैसे उसे बोध होता जाता है एक मजबूत धरना किसी भी चीज के बारे में बन जाती है बचपन के दिनों के खान-पान रीति रिवाज पहनावा आजीवन याद रहता है

80 90 के दशक में लेमनचूस की धूम रहती थी पांच पैसे का एक आता था नारंगी के फाहे के तरह नींबू का फ्लेवर संतरे का फ्लेवर साथ ही मिठास ऐसी जुबान पर दूसरा कुछ चढ़ता ही नहीं था।
उसे जमाने में स्कूल जाते वक्त 20 पैसे मिलते थे जिसमें से 10 पैसे चने पर और 10 पैसा लेमन जूस पर खर्च होता था पांच पैसे में मिलने वाला लेमन जूस का फाहा जरूर इतना बड़ा होता था कि उसे चूसते चूसते हम स्कूल चले जाते थे फिर वापसी में भी यही प्रक्रिया होती थी।

यात्रा के क्रम में बस में लेमन जूस बेचने वाले खूब नजर आते थे लोग अपने बच्चों इस मित्रों के लिए भी लेमन चूस खरीद कर ले जाते थे।
यह वह दौर था जब सब कुछ बदल रहा था खान-पान तकनीक पहनावा लोगों की सोच रेडियो की जगह टेलीविजन आ चुका था ब्लैक एंड व्हाइट टीवी अब कलर की तरफ बढ़ रहा था टेलीफोन भी नजर आने लगा था पर मोबाइल नहीं आ पाया था कंप्यूटर के बारे में कहानी सुनकर ही मन रोमांचित हो जाता था।
संदेश के लिए लोग एक दूसरे को चिट्ठियां लिखते थे अति आवश्यक सूचना के लिए टेलीग्राम जिसे हम बोलचाल की भाषा में तार कहते थे का इस्तेमाल किया जाता था

अगर किसी को टेलीग्राम आ गया तो फिर हंगामा मत जाता था आमतौर पर आफत काल में ही टेलीग्राम भेजा जाता था। लेमन चूस वाले युग में गरीबी थी हर चीज की सर्विस लगता नहीं थी फिर भी जिंदगी अपनी पटरीपर थी।
जितना कुछ उपलब्ध था लोग उतने ही में खुश थे एक दूसरे के लिए सदैव खड़े रहते थे रिश्ते नाते जिंदा थे संवेदनाएं भी जिंदा थी सड़क पर किसी को मुसीबत में देख कर लोग वीडियो नहीं बनाते थे बल्कि उसके मदद के लिए हाथ बताते थे

भीड़ तमाशा नहीं बनती थी बल्कि मददगार बनती थी।
अगर आपने भी अपने बचपन में लेमन जूस खाया है तो अपनी यादों को जरूर साझा करें