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मुझे छैना बहुत पसंद हैं और आपको? - Sanatan-Forever

मुझे छैना बहुत पसंद हैं और आपको?

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मुझे छैना बहुत पसंद हैं और आपको?

मुझे कई बार बड़ा अफ़सोस होता है कि भगवान ने छैने की मिठाई का जीवनकाल इतना कम क्यों रखा है …!!

वर्षों से सुनते आएं है कि भगवान अच्छे और नरमदिल लोगों को जल्दी ही अपने पास बुला लेता है , ठीक यही स्थिति मिठाइयों में बंगाली मिठाई उर्फ़ छैने की मिठाई की है ! छैने की मिठाई का तो दिल ही नरम नहीं होता बल्कि वो खुद भी बेहद नरम होती है !

दिखने में बेहद लजीज़.. खूबसूरत , एक से बढ़कर एक डिजाइन में सजी धजी और मेकअप से लकदक होकर ज़ब यह प्लेट में नजर आती है तो कोई भी इंसान अपनी जुबां पर कंट्रोल नहीं कर पाता… पर बेचारी के साथ विडंबना तो देखिए… कम उम्र में ही वो खुद अपनी मिठास खो बैठती है !

आजकल शादी ब्याह का समय हो या जन्मदिन , एनिवर्सरी की पार्टी… इंसान एक ना एक मिठाई तो छैने वाली बनाता ही है ! इससे खाने की प्लेट में वजन भी बढ़ता है और स्वाद भी !

पर इस मिठाई में एक ही समस्या है.. आने वाले मेहमानों के हिसाब से इसकी मात्रा की गणना में बड़े से बड़ा हलवाई भी फेल हो जाता है , इसलिए अधिकतर जीमण में छैनेवाली मिठाई या तो बच जाती है या पहले ही निपट जाती है !

पहले निपट जाए , उसका भी दुख कम नहीं है.. पर जिसके यहाँ यह मिठाई बच जाती है , उसके दुख का तो अंदाजा लगाना भी नामुमकिन है !

उसके मन में रह रहकर एक ही ख्याल बार बार उमड़ता रहता है… काश मैं कुछ मेहमानों और दोस्तों को और बुला लेता तो आज इतनी मिठाई ना बचती ! वो उन व्यवहारियों के चेहरे याद कर करके अफ़सोस जाहिर करता है जो उसने निमंत्रण लिस्ट में से एन वक़्त पर काटे थे ! बची हुई मिठाई के प्रत्येक पीस पर उसे हर उस शख्स का चेहरा नजर आता है , जिसे बुलाने में उससे चूक हो गयी थी !

वो रात को नींदों में भी एक ही बात सोचता है कि काजू कतली, खोपरापाक , मूंग चक्की या कुछ और मिठाई ज्यादा बच जाती तो कोई टेंशन नहीं थी.. पर ये बंगाली मिठाई… उफ़.. अब सुबह तक ये टिकेगी भी या नहीं ! इसे कलकत्ती मिठाई नहीं बल्कि कल तक की ही मिठाई कहना चाहिए !

पूरे घरवालों का बस एकमात्र लक्ष्य रहता है कि खराब होने से पहले कैसे भी करके पूरी मिठाई को लोगों में बाँट दी जाए ! घर में जितने भी फ्रीज उपलब्ध है उन सबमें बंगाली मिठाई को ठूंस ठूंसकर भर दिया जाता है ! वैसे ये बात तो सबको पता है कि फ्रीज केवल ठंडा रखता है ताजा नहीं.. पर फिर भी बार बार फ्रीज खोला जाता है और मिठाई को टेस्ट किया जाता है !

और हाँ.. जरूरी नहीं कि पड़ोसी सुख दुख में ही काम आए … ज़ब फंक्शन में बंगाली मिठाई ज्यादा बच जाए.. तब भी उनके चेहरे याद आते है ! चाहे पड़ोसी कुटिल ही क्यों ना हो … उससे भी यही आशा रखी जाती है कि वो उस मिठाई को स्वीकार करे !

इस परिस्थिति में हर व्यक्ति अपने पड़ोसी से यह आशा रखता है कि वो बिना कोई सवाल उठाए.. अपने स्वाभिमान की परवाह किए बगैर चुपचाप मिठाई की ट्रे को स्वीकार करके अपने पडोसी को चिंता मुक्त करे !

वैसे कई पड़ोसी इतने मुँहफट भी होते है जो मुँह पर ही कह डालते है.. और भी तो मिठाईयां बनी होगी , काजूकतली , अखरोट बर्फी… वो भी तो बची होगी या फिर ये जल्दी खराब होने वाली मिठाई ही बची है..?

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