Warning: Attempt to read property "base" on null in /home/u599592017/domains/sanatan.techtunecentre.com/public_html/wp-content/plugins/wp-to-buffer/lib/includes/class-wp-to-social-pro-screen.php on line 89
मथुरा-वृंदावन से कभी भी लेकर न आएं ये १ चीज, वरना जरूर होगा अनिष्ट, गर्ग संहिता में है इसका उल्लेख - Sanatan-Forever

मथुरा-वृंदावन से कभी भी लेकर न आएं ये १ चीज, वरना जरूर होगा अनिष्ट, गर्ग संहिता में है इसका उल्लेख

मथुरा-वृंदावन से कभी भी लेकर न आएं ये १ चीज, वरना जरूर होगा अनिष्ट, गर्ग संहिता में है इसका उल्लेख

🌹मथुरा-वृंदावन से कभी भी लेकर न आएं ये १ चीज, वरना जरूर होगा अनिष्ट, गर्ग संहिता में है इसका उल्लेख🌹
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

मथुरा-वृंदावन से कभी भी लेकर न आएं ये १ चीज, वरना जरूर होगा अनिष्ट, गर्ग संहिता में है इसका उल्लेख🌹
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
⭕मथुरा-वृंदावन की यात्रा के दौरान भक्त भगवान श्री कृष्ण में खो जाते हैं। यहां पर श्री कृष्ण की जन्मस्थली से लेकर रास लीला शामिल है। अनेकों मंदिर मौजूद है जहां पर बांके बिहारी के दर्शन करके हर एक भक्त का मन भाव-विभोर हो जाता है। कहा जाता है कि मथुरा-वृंदावन में श्री कृष्ण के विभिन्न रूपों का दर्शन करने के साथ-साथ गिरिराज यानी गोवर्धन पर्वत के दर्शन जरूर करना चाहिए। तभी आपकी ये यात्रा पूर्ण मानी जाती है। बता दें कि मथुरा से २१ किलोमीटर और वृंदावन से २३ किमी की दूरी पर गोवर्धन पर्वत मौजूद है। जहां पर हर साल लाखों भक्त पहुंचते हैं। इसके साथ ही दीपावली के ३ दिन बाद यानी गोवर्धन पूजा के दिन यहां पर विशेष पूजा की जाती है। गर्गसंहिता के अनुसार, गिरिराज को पर्वतों का राजा और श्री कृष्ण का प्यारा कहा जाता है। लेकिन कई भक्तों का मानना है कि गिरिराज को अपने घर ले जाने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा रानी और गिरिराज जी की कृपा पाने के लिए कई लोग गोवर्धन पर्वत का कुछ हिस्सा ले आते हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा करना चाहिए? आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से…

श्री कृष्ण को है गिरिराज प्यारे
गर्गसंहिता के गिरिराज खंड के पहले अध्याय में लिखा है-

🚩अहो गोवर्धन साक्षात गिरिराजो हरिप्रियः।
तत्समांनं न तर्थहि विधते भूतलेदिवि।।

•अर्थ– गोवर्धन पर्वतों का राजा और कृष्ण का प्यारा है। इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में कोई दूसरा तीर्थ नहीं है।

🪔स्वयं श्री नारद ने बताया है गिरिराज जी का महत्व
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

गर्ग संहिता के गिरिराज खंड के अध्याय ७ में गोवर्धन पर्वत के बारे में स्वयं नारद मुनि ने कहा था। उन्होंने कहा कि समूचा गोवर्धन पर्वत सभी तीर्थों में से श्रेष्ठ है। वृंदावन साक्षात गोलोक है और गिरिराज को उनके मुकुट के रूप में सम्मानित किया गया है। श्रीकृष्ण के मुकुट का स्पर्श पाकर जहां की शिला का दर्शन करने मात्र से मनुष्य देव शिरोमणि हो जाता है। गोवर्धन की यात्रा करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही जो व्यक्ति गोवर्धन पर्वत के पुच्छ कुंड में एक स्नान कर लें उसे कई यज्ञों के कराने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होगी।

गर्ग संहिता के गिरिराज खंड के अध्याय १० में लिखा है कि जो व्यक्ति गोवर्धन में होने वाले यज्ञ में उत्तम दक्षिणा देता है, वह स्वर्गलोक के मस्तक में पैर रखकर भगवान विष्णु के धाम चला जाता है।

🪔क्या गिरिराज जी को घर लेकर आना चाहिए?
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

गर्ग संहिता के गिरिराज खंड सहित कई पंडितों का कहना है कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि गिरिराज वृंदावन का मुकुट है और राधा रानी गिरिराज पर्वत के बिना नहीं रह सकती है। धरती पर जन्म लेने से पहले राधा रानी से श्री कृष्ण से कहा कि मुझे कोई ऐसी जगह चाहिए जहां शांति हो और मैने एकांत में रास कर सकूं। ऐसे में भगवान कृष्ण ने अपने हृदय की तरफ देखा और वहां से एक तेज पुंज निकला और फिर इससे गोवर्धन पर्वत बना। इस पर्वत में सुंदरता ही सुंदरता थी। कुछ समय बीतने के बाद जब श्री कृष्ण धरतीलोक आने लगे, तो उन्होंने राधा से भी साथ चलने को कहा। ऐसे में राधा रानी ने उनसे कहा कि वृंदावन यमुना और गोवर्धन के बिना मैं कैसे रहूंगी। इसके बाद ही श्री कृष्ण ने ८४ कोस में फैले बृज मंडल को धरती पर भेजा और गोवर्धन ने शाल्मल द्वीप में द्रोणाचल गिरी के यहां जन्म लिया था। इसके साथ ही गिरिराज पर्व श्री कृष्ण को अति प्रिय है। इसलिए कभी भी गिरिराज को ८४ कोस के बाहर नहीं लाना चाहिए। मान्यता है कि जो व्यक्ति ऐसा करता है, तो भविष्य में जरूर उसका अनिष्ट होता है।

श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि आपको गिरिराज की पूजा करनी है, तो गाय के गोबर का गोवर्धन बनाकर पूजा करनी चाहिए। अगर आप शिला ले जाना चाहते हैं, तो शिला पर सोना चढ़ाना पड़ेगा, अन्यथा आपको भयंकर नर्क भोगना पड़ेगा।

🪔इस युग के बाद नहीं दिखाई देगा गोवर्धन
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

गर्ग-संहिता सर्ग २, अध्याय २, श्लोक ५० में लिखा है कि गोवर्धन का उच्चतम आकार ८० फीट है। लेकिन पुलस्त्य ऋषि के शाप से पहले ये १६ मील का था। ऐसा कहा जाता है कि कलियुग के १०,००० साल बाद गोवर्धन दिखाई नहीं देंगे।

🚩यावद भागीरथी गंगा यावद गोवर्धनो गिरिः
तावत कालेः प्रभावस तु भविष्यति न कर्हिचित्

•अर्थ- जब तक भागीरथी गंगा मौजूद है तब तक गोवर्धन पर्वत मौजूद है।

🚩#जयजयश्रीराधेराधे🚩
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com
Scroll to Top
Verified by MonsterInsights