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भाद्रपद (भादो) मास महात्म्य कथा एवं पर्व विवरण - Sanatan-Forever

भाद्रपद (भादो) मास महात्म्य कथा एवं पर्व विवरण

भाद्रपद (भादो) मास महात्म्य कथा एवं पर्व विवरण

भाद्रपद (भादो) मास महात्म्य कथा एवं पर्व विवरण

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भगवान शिव को समर्पित सावन माह बीतने के बाद हिन्दु पंचांग का छठा भाद्रपद मास जिसे भादौं भी कहते हैं, प्रारम्भ हो चुका है। सावन की तरह ही भादौं का महीना धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। भाद्रपद मास में हिन्दु धर्म के अनेक बड़े व्रत, पर्व, त्यौहार पड़ते हैं जिनमें श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, हरतालिका तीज, गणेशोत्सव, ऋषि पंचमी प्रमुख हैं। भादौं मास में पड़ने वाले इन विशिष्ट उत्सवों ने सदियों से भारतीय धर्म परम्पराओं और लोक संस्कृति को समृद्ध किया है।

हिन्दु धर्म परम्पराओं में इस माह में जहां कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कर्म का संदेश देने वाले भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है तो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को प्रथम पूज्य देवता श्रीगणेश का जन्मोत्सव होता है। इस प्रकार भादौं मास कर्म और बुद्धि के समन्वय और साधना से जीवन में सफलता पाने का मार्ग दिखलाता है। भाद्रपद मास, चातुर्मास के चार पवित्र माहों का दूसरा माह है जो धार्मिक तथा व्यावहारिक नजरिए से जीवनशैली में संयम और अनुशासन को अपनाना दर्शाता है। इस माह में अनेक लोक व्यवहार के कार्य निषेध होने के कारण यह माह शून्य मास भी कहलाता है, इसमें नए घर का निर्माण, विवाह, सगार्इ आदि मांगलिक कार्य शुभ नहीं माने जाते, इसलिए यह माह भकित, स्नान-दान के लिए उत्तम समय माना गया है। उत्तम स्वास्थ्य की दृषिट से भादौं मास में दही का सेवन नहीं करना चाहिए। इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करने से जन्म-जन्मान्तर के पाप नाश हो जाते हैं।

व्यक्तित्त्व निखारना सीखें भादौं के महीने से👉  हिन्दु पंचांग में जितनी भी तिथि और माह बताए गए हैं, वे सब कोई संदेश जरूर देते हैं। भाद्रपद शब्द संस्कृत के भद्र शब्द से बना है, जिसका अर्थ है सभ्य। दरअसल यह महीना व्यकितत्व निखारने का महीना है। भाद्रपद मास से पहले पड़ने वाला माह सावन शिव भकित का महीना होता है, जिस तरह सावन रिमझिम बरसता है और इसका पानी धरती के भीतर तक उतरता है, ऐसे ही भकित हमारे भीतर तक बस जाती है। जब इंसान के भीतर तक भकित उतर जाती है तो उसके व्यकितत्व में अपने-आप ही विनम्रता, अपनत्व और समत्व जैसे भाव आ जाते हैं, सभ्यता हमारे व्यकितत्व में उतर जाती है। भादौं का महीना तेज बौछारों वाली बारिश का होता है, यह सिखाता है कि जब भी कोई काम करो, जम कर करो। भादौं समय की कीमत बताता है, जैसे तेज पानी तत्काल बह जाता है, ऐसे ही वक्त भी लगातार गुजर रहा है।

भाद्रपद मास महात्म्य कथा

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एक समय नारदजी तीनों लोकों में भ्रमण करते-करते एक तेजस्वी ऋषि के यहां पहुंचे, ऋषि के आग्रह करने पर नारदजी ने भादौं मास का महत्व सुनाया। भादौं मास का महत्व ब्रहमा जी के प्रार्थना करने पर स्वयं भगवान विष्णु ने सुनाया था, इसलिए उत्तम, मध्यम अथवा अधम किसी भी प्रकार का मनुष्य क्यों न हो, इस उत्तम भादौं माह में व्रत कर महात्म्य सुनने से अतिपवित्र होकर बैकण्ठ में निवास करता है। प्राचीन काल की बात है, एक दम्पति, शम्बल और सुमति, को देवयोग से कोई संतान नहीं थी। एक समय भाद्रपद मास आने पर नगर के बहुत से स्त्री-पुरूष भादौं स्नान के लिए तैयार हुए, सुमति ने भी भाद्रपद स्नान करने का निश्चय किया परन्तु उसका पति शम्बल बहुत समझाने के बाद ही तैयार हुआ। पहले दिन तो उसने स्नान किया परन्तु दूसरे दिन शम्बल को तीव्र ज्वर हो गया जिसके फलस्वरूप पूरे भाद्रपद माास वह स्नान न कर पाया और अंतत: उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद नरक की यातनाऐं भोगकर उसने कुत्ते की योनि में जन्म लिया। इस योनि में भूख और प्यास से वह अति दुर्बल हो गया, कुछ काल व्यतीत होने पर वह वृद्ध हो गया जिससे उसके सभी अंग शिथिल हो गए। एक दिन उसे कहीं से मांस का एक टुकड़ा मिला, अचानक वह टुकड़ा उसके मुंह से छूटकर जल में गिर गया। देवयोग से उस समय भाद्रपद मास का शुक्ल पक्ष चल रहा था। उस टुकड़े को पाने के चक्कर में वह भी जल में कूद गया और मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसी समय भागवान के पार्षद दिव्य विमान लेकर आए और उसे बैकुण्ड ले गए। तब उसने कहा, ”मैंने तो किसी भी जन्म में कोर्इ पुण्य कर्म नहीं किया, फिर बैकुण्ठ कैसा? पार्षदों ने कहा, ”तुमने अन्जाने में भी भाद्रपद मास में स्नान करके अपने प्राण गंवाऐ हैं, इसी पुण्य के प्रताप से तुम्हें बैकुण्ठ प्राप्त हुआ है। तब नारद जी बोले, ”जब अज्ञात स्नान करने का फल उसे इस प्रकार प्राप्त हुआ, तब भाद्रपद मास में श्रद्धा से स्नान तथा दान आदि किया तो जाए तो पुण्य फल अत्यधिक प्राप्त होता है।

भाद्रपद मास महात्म्य अन्य प्रचलित कथा

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प्राचीनकाल में एक बड़े प्रतापी राजा थे। उनका नाम नल था। उनकी अत्यंत रूपवती पत्नी थी। उसका नाम था दम्यन्ती। राजा प्रजा का पालन मन लगाकर करते थे। अतः वे स्वंय सुखी थे और प्रजा भी पूर्ण सुखी थी। किसी प्रकार का कोई दुःख नहीं था, पर किसी शापवश राजा नल विपत्तियों की बाढ़ में बह गये। उन पर इतनी विपत्तियाँ पड़ी, जिनकी कोई गणना नहीं। उनके हाथीखाने में अनेक मदमस्त हाथी थे, जिन्हें चोर चुराकर ले गये। धुडसाल के सभी घोड़ो को भी चोर चुरा ले गये। डाकुओं ने उनके महल पर घावा बोला और सब कुछ लुटकर आग लगा दी। बचा-खुचा सब स्वाहा हो गया। ज्यों-त्यों कुछ संभले, तो जुआ खेलकर सब नष्ट हो गया।

विपत्ति की सीमा ही लंघ गयी। राजा-रानी नगर छोड़कर राज्य से बाहर हो गये। जंगल-जंगल घूमने लगे। पति- पत्नी एक तेली के यहाँ पहुँचे। तेली ने दोनों को आश्रय दिया। उसे ज्ञात नहीं था कि ये नल और दमयन्ती हैं। नल को कोल्हू के बैल हाँकने का काम सौंपा और दमयन्ती को सरसों साफ करने का। राजा-रानी ने ये काम कभी किये नहीं थे, अतः उन्हें थकान हो जाती और तेली-तेलिन के कड़वे बोलों का शिकार होना पड़ता।

राजा अपनी अनेक जान-पहचान की जगहों पर भी गया, पर शाप के कारण हर स्थान पर उनका अपमान हुआ। जंगल घूमते-घूमते राजा रानी से बिछुड़ गया। जहाँ-तहाँ भटकने लगा। दमयन्ती जंगल में अकेली रह गयी। बेचारी असहाय महिला क्या करे, क्या ना करे? अन्य मुसीबतें झेल भी ले, पर पति-वियोग की अग्नि से कैसे बचे।

एक दिन रानी की भेंट अचानक ही शरभंग ऋषि से हो गयी। ऋषि द्वारा पूछने पर दमयन्ती ने अपनी विपत्ति-कथा कह सुनायी। शरभंगजी ने दमयन्ती से कहा-पुत्री! तुम गणेशजी की पूजा-अर्चना करो और गणेश चैथ का व्रत करो।

रानी तो साधनहीन थी। ज्यों-त्यों करके उसने गणेश व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से रानी को उसका पति मिल गया और पति को खोया हुआ राज्य मिल गया। राजा-रानी गणेशजी के भक्त हो गये।

भाद्रपद महीने में कई तीज और त्योहार पड़ते हैं, इसलिए हिन्दू कैलेंडर का ये छठा महीना कई तरह से खास है। ये महीना 23 अगस्त से शुरू होके 20 सितंबर तक रहेगा। इस दिन भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि है, जो कि इस महीने का आखिरी दिन होता है। इस महीने की पूर्णिमा पर आकाश में पूर्वा या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का योग बनने से इस माह का नाम भाद्रपद है। ये चातुर्मास के चार पवित्र महीनों का दूसरा महीना भी है। पवित्र चातुर्मास के अंतर्गत आने से ग्रंथों के अनुसार इस महीने में कुछ खास नियमों का पालन करना जरूरी है।

इस महीने क्या करें और क्या नहीं

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1👉 शारीरिक शुद्धि या सुंदरता के लिए संतुलित मात्रा में पंचगव्य( दूध, दही, घी गोमूत्र, गोबर) का सेवन करें। 2. वंश वृद्धि के लिए नियमित दूध पीएं। 3. पापों के नाश व पुण्य प्राप्ति के लिए एकभुक्त (एक समय), अयाचित (बिना मांगा) भोजन या सर्वथा उपवास करने का व्रत लें। इनका त्याग करें 1👉 मधुर स्वर के लिए गुड़ का त्याग करें। 2👉 लंबी उम्र के लिए व पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का। 3.👉 सौभाग्य के लिए मीठे तेल का। 4👉 स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का। 5👉 पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, हरी सब्जी, मूली एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए।

क्या सीखना चाहिए इस महीने से

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भाद्रपद चातुर्मास के चार पवित्र महीनों का दूसरा महीना है। चातुर्मास धार्मिक और व्यावहारिक नजरिए से जीवनशैली में संयम और अनुशासन अपनाने का काल है। भाद्रपद मास में हिन्दू धर्म के अनेक बड़े व्रत, पर्व, उत्सव भी मनाए जाते हैं जैसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, हरतालिका तीज, गणेशोत्सव, ऋषि पंचमी, डोल ग्यारस और अनंत चतुर्दशी आदि। इन पर्व, उत्सवों ने सदियों से भारतीय धर्म परंपराओं और लोक संस्कृति को समृद्ध किया है। हिंदू धर्म परंपराओं में इस माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कर्म का संदेश देने वाले भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है तो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को प्रथम पूज्य देवता श्रीगणेश का जन्मोत्सव होता है। इस प्रकार यह मास कर्म और बुद्धि के संतुलन और साधना से जीवन में सफलता पाने का संदेश लेकर भी आता है।

भाद्रपद मास के पर्व त्यौहार

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20 अगस्त 👉 भाद्रपद कृष्ण पक्ष आरम्भ, गायत्री पुरश्चरण आरम्भ, मेला गोगा मेडी (राज.)

21 अगस्त 👉 अशून्य शयन व्रत पूर्ण, विशालाक्षी यात्रा (काशी)

22 अगस्त 👉 संकष्ट चतुर्थी, सातुड़ी (कज्जली) तीज, बहुला चतुर्थी, शरद ऋतु आरम्भ

23 अगस्त 👉 पंचक समाप्त 19:54 पर, राष्ट्रीय भाद्रपद मास आरम्भ, रक्षा पंचमी

24 अगस्त 👉 हल चन्दन षष्ठी, बलदेव जन्मोत्सव

25 अगस्त 👉शीतला सप्तमी, भानु सप्तमी, षष्ठी तिथिक्षय

26 अगस्त 👉श्री कृष्णजन्माष्टमी व्रत (सबका), दशाफल व्रत, संतज्ञानेश्वर जयन्ती, कालाष्टमी, गोकुलाष्टमी, अगस्तय उदय

27 अगस्त 👉 गोगा नवमी, नन्द महोत्सव

29 अगस्त 👉 अजा एकादशी व्रत (स्मार्त-वैष्णव)

30 अगस्त 👉 बछ बारस (गौवत्स पूजा), पर्यूषण पर्व जैन, पक्ष वर्धिनी महाद्वादशी

31 अगस्त 👉 शनि प्रदोष व्रत

01 सितम्बर 👉 मासिक शिवरात्री, अघोरा चतुर्दशी

02  सितम्बर 👉 पितृ कार्य हेतु भाद्रपद (पिठौरी) सोमवती-कुशोत्पाटिनी अमावस्या, लोहागर्ल स्नान यात्रा

03  सितम्बर 👉 देव कार्य हेतु भाद्रपद भौमवती अमावस्या

04  सितम्बर 👉 चन्द्र दर्शन, मौनव्रतारम्भ, नक्त व्रत पूर्ण

05  सितम्बर 👉 समावेदिय उपाकर्म, बाबा रामदेव बीज

06  सितम्बर 👉 श्री वाराह अवतार जन्मोत्सव, हरितालिका (केवड़ा) तीज, गौरी तृतीया, गुरु रामदास जयन्ती (चन्द्र दर्शन निषेध)

07  सितम्बर 👉 श्री गणेश (कंलक) चतुर्थी, गणेश जन्मोत्सव, पत्थर चौथ

(चन्द्र दर्शन निषेध)

08  सितम्बर 👉 ऋषि पंचमी (गर्ग-अंगीरा) ऋषि जन्मोत्सव, रक्षा पंचमी (बंगाल)

09  सितम्बर 👉 चम्पा-सूर्य षष्ठी, बलदेव छठ (जयन्ती) मतान्तर, ललिता षष्ठी व्रत

10  सितम्बर 👉 मुक्ता भरण सन्तान सप्तमी, मेला पाण्डूपोल (अलवर), महालक्ष्मी व्रतारम्भ

11  सितम्बर 👉 राधाष्टमी, ऋषि दधीच जन्मोत्सव, ज्येष्ठा गौर पूजन, मेला भर्तहरि आरम्भ अलवर (राज०)

12  सितम्बर 👉 अदुख (चन्द्र) नवमी उदासीन, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण

13  सितम्बर 👉 दशावतार जयन्ती, तेजा दशमी, बाबा रामदेव की 399वी जयन्ती, सुगध (धूप) दशमी जैन

14  सितम्बर 👉 जलझूलनी (परिवर्तनी) एकादशी व्रत (सबका)

15  सितम्बर 👉 प्रदोष व्रत, श्री वामन अवतार जन्मोत्सव, भुवनेश्वरी जयन्ती

16  सितम्बर 👉 संक्रान्ति, सूर्य कन्या में 19:41 से (पुण्यकाल दिन 12:34 से सूर्यास्त तक), विश्वकर्मा पूजा

17  सितम्बर 👉 श्री सत्यनारायण (पूर्णिमा) व्रत, अनन्त चतुर्दशी, गणेश विसर्जन, महालय श्राद्ध पक्ष आरम्भ, कदली व्रत, गुरु अमरदास पुण्य दिवस प्राचीन मत), पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध

18  सितम्बर 👉 स्नान-दान हेतु भाद्रपद पूर्णिमा, सन्यासियों का चातुर्मास समाप्त, खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण (भारत में नहीं), प्रतिपदा तिथि

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