भगवान् जगन्नाथ बहूदा (उल्टा ) रथ यात्रा के रोचक रहस्य
जगन्नाथ रथ यात्रा भगवान विष्णु के अवतार भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ जगत प्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी मंदिर में आयोजित की जाती है। आदि गुरु शंकराचार्य के निर्देशानुसार एक हिंदू को अपने जीवन काल में चार धाम यात्रा अवश्य करनी चाहिए। जगन्नाथ धाम मंदिर इन चार तीर्थस्थलों में से पूर्व दिशा की ओर स्थापित धाम है।
गुण्डिचा माता मंदिर रथ यात्रा से एक दिन पहिले भगवान जगन्नाथ के विश्राम के लिए साफ किया जाता है, मंदिर की सफाई के इस अनुष्ठान को गुण्डिचा माजन के नाम से जाना जाता है। तथा मंदिर की सफाई के लिए जल इन्द्रद्युम्न सरोवर से लाया जाता है। रथ यात्रा में प्रयोग होने वाले रथ का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया के शुभ पर्व पर भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद के साथ हो जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा के अनुष्ठान की तैयारियाँ रथ यात्रा के दिन से बहुत पहले से प्रारंभ हो जाया करतीं हैं। रथयात्रा से लगभग 18 दिन पहले भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन देवी सुभद्रा को औपचारिक जल स्नान कराया जाता है। जिसे स्नान यात्रा के नाम से जाना जाता है। स्नान यात्रा के दिन, भगवान को जगन्नाथ मंदिर के उत्तरी कुएं से खींचे गए शुद्ध जल के 108 बर्तनों से स्नान कराया जाता है।
ठंडे जल से स्नान के उपरांत भगवान बीमार पड़ जाते हैं, और 15 दिनों तक भक्तों को भी दर्शन नही देते हैं। इस अवधि को अनासारा के रूप में जाना जाता है। 15 दिनों के बाद भगवान वापस लौट कर आते हैं, और भक्तों को दर्शन देते हैं। भगवान के इन दर्शन को नव यौवन दर्शन तथा नेत्रोत्सव कहा जाता है। तथा नेत्रोत्सव के अगले ही दिन, भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव मनाया जाता है!
हेरा पंचमी, जगन्नाथ धाम पुरी में रथ यात्रा की प्रक्रिया के दौरान किया जाने वाला एक अनुष्ठान है। रथयात्रा के पांचवें दिन, यह अनुष्ठान आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में माता महालक्ष्मी द्वारा किया जाता है।

हेरा पंचमी 👉 मुख्य रूप से गुण्डिचा मंदिर में मनाई जाती है। इस दिन मुख्य मंदिर अर्थात जगन्नाथ धाम मंदिर से भगवान जगन्नाथ की पत्नी माता लक्ष्मी, सुवर्ण महालक्ष्मी के रूप में गुंडिचा मंदिर में आती हैं। उन्हें मंदिर से गुण्डिचा मंदिर तक पालकी में ले जाया जाता है, जहाँ पुजारी उन्हें गर्वग्रह में ले जाते हैं और भगवान जगन्नाथ से मिलाते हैं। सुवर्ण महालक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से पुरी के मुख्य मंदिर अपने धाम श्रीमंदिर में वापस चलने का आग्रह करती हैं।
भगवान जगन्नाथ उनके अनुरोध को स्वीकार करते हैं और माता लक्ष्मी को उनकी सहमति के रूप में एक माला (सनमाति माला) देते हैं। फिर शाम को माता लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर से जगन्नाथ मंदिर लौटती हैं। मुख्य मंदिर प्रस्थान से पहले, वह क्रोधित हो जाती है और अपने एक सेवक को नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ का रथ) के एक हिस्से को नुकसान पहुंचाने का आदेश देती है। जिसे रथ भंग कहा जाता है।
माता महालक्ष्मी गुंडिचा मंदिर के बाहर एक इमली के पेड़ के पीछे छिपकर इन सभी कार्यों के लिए निर्देश देती हैं। कुछ समय बाद माता हेरा गौरी साही नामक गोपनीयता मार्ग के माध्यम से शाम को जगन्नाथ मंदिर पहुँच जाती हैं।
संत एवं गुरुओं के मत के अनुसार, हेरा पंचमी श्रीमंदिर के महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। भगवान जगन्नाथ के लाखों भक्त इस अनोखे अनुष्ठान का आनंद लेते हैं।
बहुदा यात्रा 👉 देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान जगन्नाथ चार महीने के लिए अपनी निद्रा मे चले जाते हैं। इससे पहले, भगवान जगन्नाथ को अपने मुख्य मंदिर मे लौटना आवश्यक है।
अतः रथयात्रा के 8वें दिन के बाद, दशमी तिथि पर अपने मुख्य मंदिर लौटने की यात्रा को बहुडा यात्रा के नाम से जाना जाता है। बाहुदा यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ देवी अर्धासिनी घर में एक छोटा सा पड़ाव रखते हैं। माँ अर्धासिनी के इस मंदिर को मौसी माँ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।