न पूछना घर से भागी हुई बेटी के पिता की व्यथा
न पूछना
घर से भागी हुई बेटी के पिता की व्यथा
घुन की तरह घुनती है
उसको हर पल एक ही चिंता
खुद सवाल उठाने लगता है अपने संस्कारों और आचरण पर
क्या कमी रह गई थी उसकी परवारिश में
जमाने भर की थू थू और कलेजे के टुकड़े की बेरुखी
सोचने वाले का दिल ही थरथर कर उठता
जिससे बीतती है
सोचो वह क्या जीता क्या मरता?
बेटियाँ होती हैं गरूर ,और सिर का ताज
माँ बाप का जब उछाले जाते हैं रौंद दिए जाते है बेरहमी से
फिर जवाब देते नहीं बनता
एक खामोशी और उदासी संग
अविश्वास की चादर ओढ़ लेता है ह्रदय
और जीवन भर
झुकी रहती है उनकी गर्दन
उदासियों में भी दुआ यही करते हैं
जहां रहे
चाँद उनका दूर अंधेरा गमों का उससे रहे
तुम बड़ी हो गई और बालिग भी
अपनी मर्जी की मालिक हो
और काबिल भी लेकिन
माँ बाप से बड़ा कोई नहीं होता
टूटकर रोज नए रिश्ते जुड़ते हैं लेकिन
माँ बाप बस एक बार मिलते हैं.

जब मैं गांव में औरतों को चूल्हे पर काम करते हुए देखती थी तो मुझे लगता था कि ये बेचारी मजबूरी में कर रही होंगी। 😬
कितनी परेशानी होती होगी चूल्हे पर रोटी और सब्जी बनाने में।
लेकिन अब जब मुझे चार महीने गांव में आए हो गए तो सच बताऊं तो मुझे खुद चूल्हे की रोटियां ज्यादा अच्छी लगती हैं। सब्जी तो रोज मैं बनाती हूं जिसके लिए मुझ पर कोई पाबंदी नहीं थी कि चूल्हे पर बनानी है। मैं पहले गैस पर ही बनाती थी।
फिर दो तीन बार जब चूल्हे पर बनाई सच में आनंद ही आ गया।
चूल्हे की वो आग जिसके आगे कितनी भी ठंड हो सब भाग जाती है 😄
लोहे की कढ़ाई में और मस्त चूल्हे की आग पर जो सब्जी में स्वाद आता है ना वो किसी भी चीज में नहीं आ सकता।
इतना ही नहीं सब्जी भी जल्दी बनती है और सिर्फ गलती नहीं अच्छे से पकती है। 🤗
इसलिए अब मैं खुद अपनी मर्जी से सब्जी चूल्हे पर बनाने लगी हूं सच में ये बहुत मज़ेदार और संतोषजनक है। ❤️