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नींव घर की - Sanatan-Forever

नींव घर की

नींव घर की

नींव घर की

शोभा शाम को सब्जी खरीदने के लिए बाजार गई होती है तभी उसकी मुलाकात उसकी एक पुरानी सहेली से होती है। दोनों सहेलियां बड़ी गर्म जोशी के साथ मिलती हैं।

लगभग 10 साल हो गए होंगे, दोनों को एक दूसरे के बिना देखे हुए लेकिन देखते ही दोनों तुरंत पहचान लेती है। उसकी सहेली कोमल कुछ हाई-फाई सी लग रही थी।

कपड़ों से भी मॉडर्न प्रतीत हो रही थी। शोभा ने कोमल से कहा,”लगता है लॉटरी लग गई है तेरी। शायद किसी बड़े घर में शादी हो गई है तुम्हारी।”

कोमल यह सुनकर खिलखिला कर हंस पड़ी।

शोभा कोमल से कहती है चलो मेरा घर पास ही है चाय पी कर जाना। शोभा कोमल को अपने घर ले आती है।

कोमल शोभा के घर में घुसते ही उसके छोटे घर को देखकर नाक मुंह सिकोड़ने लगती है।

तभी उसकी सास अंदर से आकर उसका स्वागत करती हैं। शोभा की सास कहती है,”चलो तुम सहेलियां बैठकर बातें करो। मैं चाय बना कर लाती हूं।”

ऐसा कहकर वह रसोई में चली जाती है।

उनके जाते हैं कोमल शोभा से कहती है,”तुम्हारे इतने छोटे से घर में गुजारा कैसे हो जाता है तुम्हारा। ऊपर से तुम्हारी सास भी संग रहती है।”

कोमल की बात सुनकर शोभा को अजीब सा लगता है। वह कोमल को समझाते हुए कहती है,”घर-घर होता है छोटा या बड़ा क्या फर्क पड़ता है और रही बात मेरी सास की तो वह मेरे साथ नहीं रहती है बल्कि मैं उनके साथ रहती हूं। उनका तो घर पहले से ही है।”

शोभा की बात सुनकर कोमल फिर कहती है,”अरे बाबा ना.  सास के संग  गुजारा करना बहुत कठिन काम है। सास का तो नाम ही है सर दर्द।”

कोमल की बात सुनकर शोभा को बहुत बुरा लगता है। शोभा तेजी से कोमल को चिल्लाते हुए कहती है, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई है मेरी सास के विषय में ऐसा कहते हुए?

सास-ससुर तो इस घर की नींव है। जिन्होंने मजबूती से घर को बांध कर रखा हुआ है।”

शोभा फिर कोमल से कहती है,”मुझे तो शर्म आती है तुम्हारी सोच पर जो अपने घर के लोगों को तुच्छ समझती हो। जिनके कारण तुम इतना राज राज रही हो उन्हीं को खराब गाजर मूली समझकर अपनी जिंदगी से हटा देना।

यह व्यवहार तुम्हारा अपनी सास के प्रति है क्या तुम यही व्यवहार अपनी माँ के  प्रति भी चाहती हो।”

बड़े बूढ़े कभी बोझ नहीं होते। वह तो बैठे हुए भी घर की चौकसी कर देते हैं।

जिनकी प्रेम और ममता भरी छाया तले हम सुरक्षित महसूस करते हैं खुद को। यह वह वट वृक्ष है जिन्होंने हमें इतना मजबूत आशियाना दिया।

इतने में ही शोभा की सास चाय लेकर आ जाती है‌। कोमल खिसिया कर व्यस्तता का बहाना कर जल्दी से रपट लेती है।

आज शोभा की सास को बड़ा गर्व हो रहा था, अपनी किस्मत पर। जो इतनी अच्छी बहू उनके घर की गृहलक्ष्मी है।

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