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द्वितीय तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व - Sanatan-Forever

द्वितीय तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व

द्वितीय तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व

द्वितीय तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में महत्त्व
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द्वित्तीया तिथि

भद्रेत्युक्ता द्वितीया तु शिल्पिव्यायामिनां हिता । आरम्भे भेषजानां च प्रवासे च प्रवासिनाम्।। आवाहांश्च विवाहाश्च वास्तुक्षेत्रगृहाणि च । पुष्टिकर्मकरश्र ेष्ठा देवता च बृहस्पतिः ।।

हिंदू पंचाग की दूसरी तिथि द्वितीया है, इस तिथि को सुमंगला भी कहा जाता है क्योंकि यह तिथि मंगल करने वाली होती है। इसे हिंदी में दूज, दौज, बीया और बीज कहते हैं। यह तिथि चंद्रमा की दूसरी कला है, इस कला में कृष्ण पक्ष के दौरान भगवान सूर्य अमृत पीकर खुद को ऊर्जावान रखते हैं और शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को वह चंद्रमा को लौटा देते हैं । द्वितीया तिथि का निर्माण शुक्ल पक्ष में तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर 13 डिग्री से 24 डिग्री अंश तक होता है। वहीं कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि का निर्माण सूर्य और चंद्रमा का अंतर 193 से 204 डिग्री अंश तक होता है। द्वितीया तिथि के स्वामी ब्रह्मा जी माने गए हैं। इस तिथि में जन्मे लोगों को ब्रह्मा जी का पूजन अवश्य करना चाहिए।

द्वितीया तिथि का ज्योतिष महत्त्व
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यदि द्वितीया तिथि सोमवार या शुक्रवार को पड़ती है तो मृत्युदा योग बनाती है। इस योग में शुभ कार्य करना वर्जित है। इसके अलावा किसी माह में यदि द्वितीया तिथि दोनों पक्षों में बुधवार के दिन पड़ती है तो यह सिद्धिदा कहलाती है। ऐसे समय शुभ कार्य करने से शुभ फल प्राप्त होता है। हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद माह की द्वितीया शून्य होती है। वहीं शुक्ल पक्ष की द्वितीया में भगवान शिव माता पार्वती के समीप होते हैं ऐसे में शिवजी बहुत जल्दी प्रसन्न जाते हैं। दूसरी ओर कृष्ण पक्ष की द्वितीया में भगवान शिव का पूजन करना उत्तम नहीं माना जाता है।

द्वितीया तिथि में जन्मे जातक
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दूसरे लिंग के विपरीत बहुत जल्दी आकर्षित हो जाते हैं। यह भावनात्मक तौर पर बहुत कमजोर होते हैं। इन लोगों को लंबी यात्रा करना बहुत पसंद होता है। ये जातक प्रियजनों से ज्यादा परायों के प्रति अपना प्रेम दर्शाते हैं। ये जातक काफी मेहनती होते हैं और उन्हें समाज में मान सम्मान भी प्राप्त होता है। इन जातकों का अपनों के साथ हमेशा मतभेद बना रहता है। इनके पास मित्रों की अधिकता होती है जिसकी वजह से कभी कभार ये बुरी संगति में भी पड़ जाते हैं।

शुभ कार्य
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कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि में यात्रा, विवाह, संगीत, विद्या व शिल्प आदि कार्य करना लाभप्रद रहता है। इसके विपरीत शुक्ल पक्ष की द्वितीया में आप शुभ कार्य नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा किसी भी पक्ष की द्वितीया को नींबू का सेवन करना वर्जित है साथ ही उबटन लगाना भी शुभ नहीं माना गया है।

द्वितीया तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
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भाई दूज
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दीपावली के तीसरे दिन भाईदूज का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन यमराज के पूजन का भी महत्व होता है। इसलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस पर्व पर बहन अपने भाई को तिलक करती है और यम की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय भी समाप्त हो जाता है।

जगन्नाथपुरी रथयात्रा
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आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ओडिशा स्थित जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ की यात्रा पर्व मनाया जाता है। इसमें श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा की शोभायात्रा निकाली जाती है।

अशून्य शयन व्रत
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अशून्य शयन व्रत श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया का रखा जाता है। इस व्रत में श्रीविष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस व्रत को रखने से स्त्री को सौभाग्य प्राप्त होता है और दांपत्य जीवन सुखी रहता है।

नारद जयंती
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ब्रह्मा जी के मानस पुत्र नारद जी का ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन नारद जयंती मनाई जाती है। इस दिन नारद जी के पूजन के साथ भगवान विष्णु का भी पूजन किया जाता है।

यम द्वितीया
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कार्तिक शुक्ल द्वितीया को पूर्व काल में [ यमुना ] ने यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। उस दिन नारकी जीवों को यातना से छुटकारा मिला और उन्हें तृप्त किया गया। वे पाप मुक्त होकर सब बंधनों से छुटकारा पा गये और सब के सब यहां अपनी इच्छा के अनुसार सन्तोषपूर्वक रहे। उन सब ने मिलकर एक महान् उत्सव मनाया जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इसीलिए यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से विख्यात हुई। जिस तिथि को यमुना ने यम को अपने घर भोजन कराया था, उस तिथि के दिन जो मनुष्य अपनी बहन के हाथ का उत्तम भोजन करता है उसे उत्तम भोजन समेत धन की प्राप्ति भी होती रहती है।

पद्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को पूर्वाह्न में यम की पूजा करके यमुना में स्नान करने वाला मनुष्य यमलोक को नहीं देखता (अर्थात उसको मुक्ति प्राप्त हो जाती है)।
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