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देवताओं के सोने (देवशयन/हरिशयन) की मान्यता क्यों? - Sanatan-Forever

देवताओं के सोने (देवशयन/हरिशयन) की मान्यता क्यों?

देवताओं के सोने (देवशयन/हरिशयन) की मान्यता क्यों?

देवताओं के सोने (देवशयन/हरिशयन) की मान्यता क्यों?

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प्रति वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से हरिशयन अथवा देवशयन प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। इस अवधि को चातुर्मास कहते हैं।

सोए हुए देवों को जगाने से वे कुपित हो सकते हैं, इसलिए इन चार महीनों में विवाह, गृह प्रवेश, देवी-देवता की प्राण प्रतिष्ठा, यज्ञादि संस्कार एवं अन्य शुभ कार्य बंद रहते हैं।

देवउठनी एकादशी को जब देवता चार माह के शयन के बाद जागते हैं, तब सभी शुभ काम फिर से आरंभ हो जाते हैं।

पद्मपुराण एवं श्रीमद्भागवत पुराण आदि धार्मिक शास्त्रों में हरिशयन को योगनिद्रा भी कहा गया है।

भगवान् विष्णु मानसिक तप करके अपने परम इष्ट की साधना करते हैं, वह भी योगनिद्रा ही है, जिसे शयन के नाम से जाना जाता है। हरि के रूप सूर्य-चंद्रमा, वायु और विष्णु भी हैं।

हरिशयन के दृष्टिकोण से देखें, तो इन चार मास में बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चंद्रमा का तेज क्षीण हो जाना उनके शयन का ही रूप है। वर्षाकाल के बाद वायु शांत रहती है, जो वायु के शयन का द्योतक है।

चातुर्मास में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीरगत शक्ति सो जाती है।

विष्णुपुराण, पद्मपुराण एवं श्रीमद्भागवत पुराण आदि के मतानुसार भगवान् विष्णु ने वामन रूप में दैत्यराज बलि के यज्ञ में दान स्वरूप तीन पग धरती देने का वचन लिया।

विष्णु ने अपना विराट् रूप धारण कर वचनानुसार पहला पग बढ़ाया, तो संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया।

दूसरे पग में सारा स्वर्ग लोक ले लिया। फिर तीसरा पग रखने के लिए बलि से जगह मांगी, तो अपना वचन पूरा करने के लिए बलि ने स्वयं को समर्पित करते हुए विष्णु से अपने सिर पर तीसरा पग रखने को कहा।

इससे भगवान् विष्णु ने प्रसन्न होकर सत्यपालन और त्याग के लिए उसे महादानी के रूप में सम्मानित करके पाताल लोक का अधिपति बना दिया और वर मांगने को कहा।

वर मांगते हुए बलि ने कहा कि आप नित्य मेरे महल में रहें। इस पर विष्णु ने उन्हें वरदान दे दिया। बलि के बंधन में स्वामी को बंधा देख लक्ष्मी ने उसे रक्षासूत्र बांध कर भाई बना लिया और स्वामी को वचन मुक्त करने का निवेदन किया।

कहा जाता है कि तभी से विष्णु द्वारा दिए गए वर का पालन करने हेतु तीनों देवता क्रमशः 4-4 माह सुतल में निवास करते हैं।

इस प्रकार भगवान् विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक, शंकर महाशिवरात्रि तक और ब्रह्माजी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक सुतल पर निवास करते हैं।

पौराणिक आख्यानों के अनुसार हरिशयन के दौरान भगवान् विष्णु क्षीरसागर में शेषशय्या पर योगनिद्रा में लीन हो जाते हैं और उनका दूसरा रूप राजा बलि के यहां सुतल लोक में उपस्थित रहता है।

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