दूसरों के पाप-पुण्य का निर्णय करने वाले हम कौन होते हैं…….बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख जरूर पढें!

एक संन्यासी की कुटी के सामने ही एक बहन का मकान था । वह बहुत रूपवती थी, पर रास्ता भूली हुई थी ।
सहर के धनी-मानी घरों के व्यक्ति उसके यहाँ आते रहते थे । जब कोई व्यक्ति उस बहन के पास आता, संन्यासी उसके नाम का एक पत्थर अपनी कुटी के सामने रख देता । धीरे-धीरे पत्थरों का ढेर जमा हो गया ।
एक दिन जब वह पथ भूली हुई बहन घर से बाहर निकली, तब अचानक उसने अपने घर के सामने पत्थरों का ढेर देखा । इस सम्बन्ध में उसने संन्यासी से पूछा । संन्यासी ने कहा – ‘यह तुम्हारे दुष्कर्मों का ढेर है !
एक दिन ये ही पत्थर तुम्हारे गले में बँधकर तुमे नरक में ले जायँगे ।‘ पथ भूली हुई बहन को संन्यासी की बात सुनकर और सामने पत्थरों के बड़े ढेर को देखकर अपने कृत्यों पर बड़ी ग्लानि हुई और तत्काल वह वहीं गिरकर मर गयी ।

थोड़े दिनों के बाद संन्यासी की भी मृत्यु हो गयी । मरने के बाद वह बहन स्वर्ग में गयी और संन्यासी नरक में ।
संन्यासी ने यमराज से पूछा – ‘मैं नित्य धर्म-भजन में अपना दिन बिताया करता था, जिसके बदले में मुझे नरक मिला और वह बहन, जो दिन रात पापकर्म में लगी रहती थी, उसे स्वर्ग मिला, इसका कारण क्या है ?
यमराज ने उत्तर दिया – आप रोज दूसरों के पापों की गणना में लगे रहते थे, इसलिये आपको नरक दिया गया और उस बहन ने अपने पापों का इतना बड़ा प्रायश्चित किया कि उसने अपने आपको भी दे दिया. इसलिये उसे स्वर्ग मिला ।

दूसरों के पाप-पुण्य का निर्णय करने वाले आप कौन होते हैं ? आपको केवल इतना अधिकार है कि अपने पापों की आलोचना करें, दूसरों की नहीं।