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दाल_बाटी - Sanatan-Forever

दाल_बाटी

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जिस तरह बिहार में लिट्टी चोखा फेमस है इस तरह राजस्थान में दाल बाटी फेमस है लिट्टी और बाटी की मेकिंग काफी हद तक मिलती-जुलती है।

लखनऊ पहुंचते पहुंचते बाटी तो बच जाता है पर उसके साथ में बिहार वाला चोखा ऐड हो जाता है और वहां के लोग बाटी चोखा कहते हैं।

आइये जानते हैं बाटी का अविष्कार क्यों, कहाँ, कब और कैसे हुआ।

बाटी मूलत राजस्थान का पारंपरिक व्यंजन हैै।

इसका इतिहास करीब 1300 साल पुराना है।

8वीं सदी में राजस्थान में बप्पा रावल ने मेवाड़ राजवंश की शुरुआत की।

बप्पा रावल को मेवाड़ राजवंश का संस्थापक भी कहा जाता है।

इस समय राजपूत सरदार अपने राज्यों का विस्तार कर रहे थे। इसके लिए युद्ध भी होते थे।

इस दौरान ही बाटी बनने की शुरुआत हुई।

दरअसल युद्ध के समय हजारों सैनिकों के लिए भोजन का प्रबंध करना चुनौतीपूर्ण काम होता था।

कई बार सैनिक भूखे ही रह जाते थे। ऐसे ही एक बार एक सैनिक ने सुबह रोटी के लिए आटा गूंथा, लेकिन रोटी बनने से पहले युद्ध की घड़ी आ गई और सैनिक आटे की लोइयां रेगिस्तान की तपती रेत पर छोड़कर रणभूमि में चले गए।

शाम को जब वे लौटे तो लोइयां गर्म रेत में दब चुकी थीं, जब उन्हें रेत से बाहर से निकाला तो दिनभर सूर्य और रेत की तपन से वे पूरी तरह सिंक चुकी थी। थककर चूर हो चुके सैनिकों ने इसे खाकर देखा तो यह बहुत स्वादिष्ट लगी।

इसे पूरी सेना ने आपस में बांटकर खाया। बस यहीं इसका अविष्कार हुआ और नाम मिला बाटी।

इसके बाद बाटी युद्ध के दौरान खाया जाने वाला पसंदीदा भोजन बन गया। अब रोज सुबह सैनिक आटे की गोलियां बनाकर रेत में दबाकर चले जाते और शाम को लौटकर उन्हें चटनी, अचार और रणभूमि में उपलब्ध ऊंटनी व बकरी के दूध से बने दही के साथ खाते।

इस भोजन से उन्हें ऊर्जा भी मिलती और समय भी बचता। इसके बाद धीरे-धीरे यह पकवान पूरे राज्य में प्रसिद्ध हो गया और यह कंडों पर बनने लगा।

अकबर के राजस्थान में आने की वजह से बाटी मुगल साम्राज्य तक भी पहुंच गई।

मुगल खानसामे बाटी को बाफकर (उबालकर) बनाने लगे। इसे नाम दिया बाफला।

इसके बाद यह पकवान देशभर में प्रसिद्ध हुआ और आज भी है और कई तरीकों से बनाया जाता है।

अब बात करते हैं दाल की। दक्षिण के कुछ व्यापारी मेवाड़ में रहने आए तो उन्होंने बाटी को दाल के साथ चूरकर खाना शुरू किया।

यह जायका प्रसिद्ध  हो गया और आज भी दाल बाटी का गठजोड़ बना हुआ है।

उस दौरान पंचमेर दाल  खाई जाती थी। यह पांच तरह की दाल चना, मूंग, उड़द, तुअर और मसूर से मिलकर बनाई जाती थी।

इसमें सरसो के तेल या घी में तेज मसालों का तड़का होता था।

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