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तेल मालिश संबंधित नियम - Sanatan-Forever

तेल मालिश संबंधित नियम

तेल मालिश संबंधित नियम

तेल मालिश संबंधित नियम
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कब और क्यों न करें मालिश या मसाज?

वैसे तो स्वस्थ त्वचा के लिए तेल मालिश करना नियमित दिनचर्या है लेकिन सप्ताह में इसे केवल तीन दिन ही करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि सोमवार, बुधवार और शनिवार को तेल मालिश करना चाहिए। जबकि रविवार, मंगलवार, गुरुवार और शुक्रवार को तेल मालिश नहीं करनी चाहिए। अगर रोजाना करना ही हो तो फिर कुछ उपाय करने के बाद ही करें। बहरहाल सवाल यह उठता है कि रवि, मंगल, गुरुवार और शुक्रवार को तेल से मालिश क्यों न करें? दरअसल इसके पीछे भी विज्ञान है। शास्त्र कहते हैं कि इन दिनों में तेल से मालिश करने पर रोग होने की आशंका रहती है।

तैलाभ्यांगे रवौ ताप: सोमे शोभा कुजे मृति:।

बुधेधनं गुरौ हानि: शुझे दु:ख शनौ सुखम् ॥

अर्थ- रविवार को तेल मालिश से ताप यानी गर्मी संबंधी रोग, सोमवार को शरीर के सौन्दर्य में वृद्धि, मंगलवार को मृत्यु भय, बुधवार को धन की प्राप्ति, गुरुवार को हानि, शुक्रवार को दु:ख और शनिवार को करने से सुख मिलता है।

चार दिन क्यों नहीं
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शास्त्रों के अनुसार रविवार, मंगलवार और गुरुवार को तेल से मालिश करना मना है। इसके पीछे भी विज्ञान है। रविवार का दिन सूर्य से संबंधित है। सूर्य से गर्मी उत्पन्न होती है। अत: इस दिन शरीर में पित्त अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक होना स्वाभाविक है।

तेल से मालिश करने से भी गर्मी उत्पन्न होती है। इसलिए रविवार को तेल से मालिश करने से रोग होने का भय रहता है। मंगल ग्रह का रंग लाल है।

इस ग्रह का प्रभाव हमारे रक्त पर पड़ता है। इस दिन शरीर में रक्त का दबाव अधिक होने से खुजली, फोड़े फुन्सी आदि त्वचा रोग या उनसे मृत्यु होने का डर भी रहता है।

गुरुवार के दिन तेल लगाने से व्यक्ति के शरीर में चर्बी की मात्रा जल्दी बढ़ने लगती है जो आगे चलकर कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है तथा इस दिन तेल लगाने से गुरु ग्रह के प्रतिकूल प्रभाव भी देखने को मिलते है

इससे व्यक्ति का सौभाग्य खत्म होने लगता है और उसे कई तरह के कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह शुक्र ग्रह का संबंध वीर्य तत्व से रहता है।

इस दिन मालिश करने से वीर्य संबंधी रोग हो सकते हैं।

अगर रोजाना मालिश करना हो तो तेल में रविवार को फूल, मंगलवार को मिट्टी, गुरुवार को पीपल का पत्ते का रस और शुक्रवार को गाय का मूत्र डाल लेने से कोई दुष्प्रभाव नही होता।
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जीभ का रस

अगर इंसान अपनी जीभ पर नियंत्रण न रखे तो जीभ का रस न सिर्फ उसका तिरस्कार करवाता है बल्कि हंसी भी उड़वाता है।

☝एक बूढ़ा राहगीर थक कर कहीं टिकने का स्थान खोजने लगा। एक महिला ने उसे अपने बाड़े में ठहरने का स्थान बता दिया। बूढ़ा वहीं चैन से सो गया। सुबह उठने पर उसने आगे चलने से पूर्व सोचा कि यह अच्छी जगह है, यहीं पर खिचड़ी पका ली जाए और फिर उसे खाकर आगे का सफर किया जाए। बूढ़े ने वहीं पड़ी सूखी लकड़ियां इकठ्ठा कीं और ईंटों का चूल्हा बनाकर खिचड़ी पकाने लगा। बटलोई उसने उसी महिला से मांग ली।

बूढ़े राहगीर ने महिला का ध्यान बंटाते हुए कहा, ‘एक बात कहूं.? बाड़े का दरवाजा कम चौड़ा है। अगर सामने वाली मोटी भैंस मर जाए तो फिर उसे उठाकर बाहर कैसे ले जाया जाएगा.?’ महिला को इस व्यर्थ की कड़वी बात का बुरा तो लगा, पर वह यह सोचकर चुप रह गई कि बुजुर्ग है और फिर कुछ देर बाद जाने ही वाला है, इसके मुंह क्यों लगा जाए।

उधर चूल्हे पर चढ़ी खिचड़ी आधी ही पक पाई थी कि वह महिला किसी काम से बाड़े से होकर गुजरी। इस बार बूढ़ा फिर उससे बोला: ‘तुम्हारे हाथों का चूड़ा बहुत कीमती लगता है। यदि तुम विधवा हो गईं तो इसे तोड़ना पड़ेगा। ऐसे तो बहुत नुकसान हो जाएगा.?’

इस बार महिला से सहा न गया। वह भागती हुई आई और उसने बुड्ढे के गमछे में अधपकी खिचड़ी उलट दी। चूल्हे की आग पर पानी डाल दिया। अपनी बटलोई छीन ली और बुड्ढे को धक्के देकर निकाल दिया।

तब बुड्ढे को अपनी भूल का एहसास हुआ। उसने माफी मांगी और आगे बढ़ गया। उसके गमछे से अधपकी खिचड़ी का पानी टपकता रहा और सारे कपड़े उससे खराब होते रहे। रास्ते में लोगों ने पूछा, ‘यह सब क्या है.?’ बूढ़े ने कहा, ‘यह मेरी जीभ का रस टपका है, जिसने पहले तिरस्कार कराया और अब हंसी उड़वा रहा है।’

तात्पर्य यह है के पहले तोलें फिर बोलें

चाहे कम बोलें मगर जितना भी बोलेन मधुर बोलें और सोच समझ कर बोलें।

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