जीवन काका
जीवन काका आज सुबह से ही बहुत भाग दौड़ कर रहे थे ….चार बार तो मुझे ही गली के मोड़ तक भेज दिया ,यह देखने कि मिठाई वाला आ रहा है अभी , कि नहीं??? कल शाम को ही तो बात करके आए थे मिठाई वाले से और बोल कर आए थेl
कि सुबह ११:०० बजे तक घर पर मिठाई के डब्बे पहुंचा दिए जाएं …मगर अब तो १२:०० बजने को आए थे अभी तक मिठाई वाला नहीं आया था इसी बात को लेकर जीवन काका बहुत चिंतित लग रहे थे …उनकी व्याकुलता देखकर मुझे भी चिंता हो रही थी… जीवन काका को हर काम समय पर करना अच्छा लगता है…
मैं तो बहुत सालों से उनको देख रहा हूं उनके द्वारा किसी भी काम में कोई आलस नहीं होता उनसे मैंने भी बहुत कुछ सीखा है महज १५ बरस का था मैं, जब उनके घर बावर्ची बनकर आया था ….
आज मुझे १० वर्ष हो गए उनके घर पर खाना बनाते-बनाते …मेरे आने के 2 साल बाद तो जमुना काकी चल बसी थी जीवन काका तब बहुत रोए थेl काकी का इलाज करवाने में जीवन काका ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी शहर से डॉक्टर बुलवा लिए थे…
मगर होनी को कौन टाल सकता है… निशा दीदी तब कॉलेज में पढ़ती थीl जीवन काका से छोटे उनके एक भाई है.. वह रेलवे की नौकरी करते हैं …सरकारी क्वार्टर में रहते हैं…
अपने परिवार के साथ…
यहां उनका आना काम ही होता है …जब तक जीवन काका के मां बाबूजी जिंदा थे ,तो सब परिवार एक साथ इकट्ठा हो जाया करता था… उनके चले जाने के बाद धीरे-धीरे सब अपने परिवारों में व्यस्त हो गए…
जमुना काकी के जाने के बाद तो वैसे ही घर में सन्नाटा सा छा गया था… निशा दीदी तो अक्सर अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहती थी… जीवन काका एक स्कूल में अध्यापक थे और शाम को घर पर भी बच्चों को ट्यूशन दिया करते थे ….
खैर अब तो जीवन काका की भी उम्र हो गई थी …स्कूल में तो नहीं जाते थे, मगर शाम को कुछ बच्चे घर पर पढ़ने जरूर आ जाया करते है…. निशा दीदी ने तो अंग्रेजी में मास्टरी कर ली थी …अब तो एक प्राइवेट कॉलेज में प्रोफेसर है …
जीवन काका ने निशा दीदी को कभी किसी बात की कमी नहीं होने दी ….पिछले महीने ही निशा दीदी का रिश्ता तय किया था उन्होंने… यह रिश्ता उनके एक दोस्त ने ही बताया था …
लड़का यूनिवर्सिटी में गणित का प्रोफेसर है …दिखने में भी सुंदर है और घर परिवार भी अच्छा है …निशा दीदी शहरी माहौल में चली जाएगी …कहीं ना कहीं मुझे अंदर से बहुत उदासी महसूस हो रही थी… जब जमुना काकी गई थी ,तो मेरा भी मन बहुत उदास हुआ था…
उनसे मां का प्यार मिलता था… निशा दीदी ने हमेशा मेरे साथ एक छोटे भाई जैसा व्यवहार किया… अब वह चली जाएगी अपने ससुराल…. मैं इस बात को लेकर बहुत उदास था…
लीजिए जीवन काका की चिंता भी खत्म हुई, मिठाई वाले आ गए…. मिठाई के डब्बे लेकर… आज लड़के वाले शगुन लेकर आ रहे थे …सुबह से बहुत भागा दौड़ी हो रही थी…
मैं तो सुबह से उठकर पकवान बनाने में लगा हुआ था …
आज तो मेरी मदद के लिए तीन-चार लोग बाहर से भी बुला लिए थे मैंने… हवेली का आंगन काफी बड़ा था….
सारी व्यवस्था यहीं पर कर दी गई थी लड़के वालों ने शाम ४:०० बजे तक पहुंचने का समय दिया था …निशा दीदी आज कॉलेज नहीं गई थी… जीवन काका ने अपने भाई को भी न्योता दिया था…
निशा दीदी के ननिहाल से भी कुछ लोग कल शाम को ही आ गए थे… सब तैयारी करते-करते समय कब बीत गया ,पता ही नहीं चला… और ४:०० बजने को आए …
हम सब समय पर तैयार थे… खाना भी तैयार था… मुझे अंदर से बहुत डर लग रहा था …यूं तो बहुत वर्षों से इस घर में खाना बना रहा हूं… मगर आज घर में दामाद आ रहा था .. तो कुछ अजीब सा डर था मन में कि, सबको खाना पसंद आ जाए ….
बस फिर क्या था… देखते-देखते वह लोग आ गए …एक-एक करके चार गाड़ियां हवेली के बाहर रुकी….
मैं दरवाजे पर ही दो लोगों के साथ उनका स्वागत करने के लिए और सामान पकड़ने के लिए खड़ा हो गया ….जब वे लोग गाड़ी से उतरे तो मैंने लड़के को देखा, सच में राजकुमार था …
मन से एक ही प्रार्थना निकली … हमारी निशा दीदी बहुत सुखी रहे… उसे यहां की याद कभी ना आए… यह सोचकर मेरी आंखें थोड़ी भर आई…. अपने आंसुओं को छुपाते हुए मैंने फट से उनके हाथों से फल की टोकरिया पड़ी और अंदर ले आया …
वे सभी अंदर आ गए …बड़े से आंगन में कुर्सियां लगी हुई थी… दो सोफे वाली कुर्सियां लड़का और लड़की के लिए लगाई गई थी…. मैंने अपने हाथों से उन पर फूलों से सजावट भी की थी…
जीवन काका और सभी रिश्तेदार मिलकर उनका स्वागत करने लगे …मैंने जल्दी-जल्दी लड़कों को साथ लेकर सबको शरबत पिलाया… उसके बाद शगुन की रस्म शुरू की गई… सच में यह रसमें कितनी भावुक करने वाली होती है…
मुझे तो अपना विवाह याद आ गया… गांव में भी इसी प्रकार सब रसमें हुई थी मेरी शादी की… जीवन काका ने मेरे विवाह पर भी बहुत खर्चा किया था …मुझे बहुत सामान देकर भेजा था यहां से, जब मैं गांव के लिए रवाना हुआ था …
उन्होंने सच में मुझे अपने घर के सदस्य की तरह ही समझा हमेशा… शगुन की रस्म हो गई और मैंने फटाफट खाना लगवाना शुरू कर दिया …सब लोग खाना खा रहे थे…
निशा दीदी और दामाद जी भी एक तरफ बैठकर खाना खाने लगे …सच में दोनों की जोड़ी बहुत अच्छी लग रही थी …नजर ना लगे… इतने में पंडित जी भी आ गए …
जीवन काका ने ही उनको बुलाया था… विवाह की तारीख जो निकालनी थी ६ महीने बाद की तारीख निकल आई …अब तो हमारी निशा दीदी इस घर में मेहमान ही थी….
जीवन काका ने सभी लड़के वालों को मिठाई के डब्बे दिए …तोहफे दिए उसके बाद सब विदा हो गए …थोड़ा-थोड़ा अंधेरा भी हो ही गया था वह लोग अपनी गाड़ियों से रवाना हो गए …
मैं बर्तन समेटने में लग गया… निशा दीदी भी अपने कमरे में चली गई…. उनके ननिहाल वाले आराम करने लगे …जीवन काका आंगन में बैठे पता नहीं क्या सोच रहे थे …
मगर वह अपने में पूरी तरह खोए हुए थे …सच में जीवनसाथी तो जीवनसाथी ही होता है… यूं तो सब काम आज अच्छे से निपट गए थे …मगर फिर भी जीवन काका जमुना काकी को बहुत याद कर रहे थे…
अपने बच्चों का विवाह करना,एक अहम कार्य होता है …जीवन काका अकेले ही यह सब कर रहे थे… यूं तो हम सब लोग उनके साथ थे …मगर फिर भी आंतरिक रूप से कहीं ना कहीं वह जमुना काकी की कमी महसूस कर रहे थे….
