लालमेवा
पपीता को भोजपुरी में लाल मवा कहते हैं
क्यों कहते हैं यह नहीं पता पर शायद इसके बहु उपयोगी गुणों के कारण ही लाल मवा नाम दिया गया हो।
बिहार में पपीते की जो देसी नस्ल है वह धीरे-धीरे आप समाप्त होने के कगार पर है पहले हर घर के पिछवाड़े में पपीते का यह पेड़ होता था आप ही लंबा फल भले कम लगते थे पर टेस्ट जबरदस्त होता था तोड़ना आसान नहीं होता था धीरे-धीरे यह नस्ल समाप्त होने लगी और इसकी जगह ताईवानी पपीते में बिहार में अपनी एक मजबूत स्थिति कायम कर ली।

ताइवान पपीते की खासियत या होती है कि इसका पौधा छोटा होता है फल खूब लगते हैं एक पेड़ पर औसतन दो से ढाई कुंतल तक फल लग जाते हैं साथ ही साथ या 90 दिनों में फल देने लगता है
जो अगले दो वर्षों तक कायम रहता है ग्रामीण इलाके में पपीता व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी किसानों के लिए काफी फायदेमंद है कच्चे पपीते की बिक्री सब्जी के रूप में पपीते के दूध की बिक्री औषधि के लिए तथा पके हुए पपीते का व्यवसाय फल के रूप में होता है
कई सारी कंपनियां अब बिहार के किसानों के खेतों को लीज पर लेकर पपीते की खेती को बढ़ावा दे रही है बिहार में पपीते की जितनी खपत है उसका 10 फ़ीसदी भी बिहार में नहीं उत्पादन हो पता है बिहार के असंचित इलाके में पपीते की खेती के लिए सबसे बेहतर आबोहवा है।
पपीते की खेती के लिए जल जमा वाले इलाके ठीक नहीं होते पर खेत में नमी होनी चाहिए पपीते के फसल के साथ ही साथ आप हल्दी और अन्य सब्जियों की खेती भी कर सकते हैं

पपीते के पत्ते जो जमीन पर गिरते हैं वह वर्मी कंपोस्ट के रूप में काम आ जाते हैं इसकी खेती में लागत नाम मात्र का है जितना खर्च है वह खेत तैयार करने तथा पाठशाला से पौधा लेकर खेतों तक में लगाने तक में है फिर उसकी सुरक्षा का प्रबंध करना है लेबोरेटरी में तैयार किए जाते हैं
वह इस रोग से दूर रहते हैं यानी जो पौधा होगा उसमें फल जरूर लगेगा जबकि देसी प्रजाति में यह समस्या है पपीते का कलर जो देसी प्रजाति है वह लाल होती थी इसलिए उसे लाल मवा का नाम दिया गया अब देसी प्रजाति के पपीते आपको देहाती इलाके में ही कहीं गाहे बगाहे देखने को मिल सकते हैं लोग
अब नर्सरी से ताइबानी नस्ल के पपीते के पौधे को लगाते है। बाजार में कच्चा पपीता 30 से ₹40 किलो की दर पर जबकि पका पपीता 50 से 75 रुपए की दर पर उपलब्ध है
पपीते की खासियत होती है कि पकाने के बाद भी जल्दी खराब नहीं होता है अगर इसे आप पेपर में लपेट कर रख दें तो यह एक महीने तक खराब नहीं होता।
स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से कच्चा पपीता और पका पपीता दोनों काफी फायदेमंद इसके लिए बाजार तलाशने की जरूरत नहीं है हर जगह इसकी डिमांड है।……..

पपीता का सेवन करना सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है. दादी-अम्मा से लेकर आयुर्वेद के डॉक्टर भी इसके सेवन करने की सलाह देते हैं. वैसे तो लोग ज्यादातर पपीते का सेवन करते हैं, लेकिन इसकी जड़ों से लेकर पत्तियां तक सेहत के लिए फायदेमंद मानी जाती हैं. इसके पत्तों से तैयार काढ़ा सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है.
पपीता प्रकृति का दिया अनमोल तोहफा है. चरक संहिता में पपीता के जड़ से लेकर पत्ते तक को सेहत के लिए फायदेमंद बताया गया है. इसके पत्ते से बना काढ़ा सेवन करने से सेहत को काफी फायदा पहुंचता है….
पपीते में फाइबर, फोलेट, पोटेशियम, विटामिन ए, विटामिन सी, जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जिस कारण इसके पत्तों से बने काढ़ा का सेवन करना कई रोगों के खतरे को काम करता है. खासकर डेंगू के लिए यह काढ़ा रामबाण बताया जाता है.
इसके पत्तों में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जिससे शरीर में हो रहे दर्द, सूजन कम होता है. साथ ही, इसके सेवन मात्र से शरीर की इम्यूनिटी बूस्ट होती है, जिससे शरीर को दूसरे रोगों से लड़ने में मदद मिलती है.

इसके अलावा, इसका सेवन करने से बालों का झड़ना कम होता है. कोलेस्ट्रॉल और शुगर लेवल स्थिर बेहतर होता है. इस काढ़ा को लगातार सेवन करने से लीवर भी मजबूत होता है. इसके अलावा, पपीता फल खाने से पाचन तंत्र मजबूत होता है.
इसके अलावा, इसका सेवन करने से बालों का झड़ना कम होता है. कोलेस्ट्रॉल और शुगर लेवल स्थिर बेहतर होता है. इस काढ़ा को लगातार सेवन करने से लीवर भी मजबूत होता है. इसके अलावा, पपीता फल खाने से पाचन तंत्र मजबूत होता है……