कल्याणकारी माँ महाकाली अर्थ एव स्वरूप चिंतन
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दिव्य मां और उनके भक्तों के प्रेम एक विलक्षण संबंध है । इसकी अभिव्यक्ति विविध प्रकार से की गई है । भयकारी आकृति धारण करने के बावजूद महाकाली ऐसी देवी हैं, जिनके साथ भक्त आत्मीयता का अनुभव करते हैं । इस संबंध के अंतर्गत भक्त बालक बन जाता है और महाकाली मां का रूप धारण कर लेती हैं । लपलपाती जीभ और मुंडमाला के साथ भगवान शिव की छाती पर नृत्य करती देवी को प्राय: लोग अत्यंत भयानक समझते हैं।
देवी महाकाली जी के प्रतीक को तभी समझा जा सकता है, जब उसके अर्थ की सही जानकारी प्राप्त हो । भगवान शिव परम तत्व हैं और देवी मां उनकी शक्ति हैं, जिन्हें प्रकृति के रूप में समझना चाहिए । संपूर्ण ब्रह्मांड या विश्व की अभिव्यक्ति उस परम तत्व की शक्ति के नृत्य का एक प्रकार है । शक्ति का अदृश्य आधार शिव हैं।

देवी महाकाली द्वारा प्रत्येक मुंड एक ब्रह्मांड है । यहां ब्रह्मांड को मुंड के रूप में दिखाया गया है, क्योंकि जो भी अस्तित्व में आता है, उसका नाश अवश्यंभावी है । मुंडमाला धारण करने वाली देवी महाकाली जी संदेश देती हैं कि जिस विश्व के पीछे तुम ध्यान लगाए हुए हो, वह नाशवान और परिवर्तनशील है । वस्तुत: नष्ट हुए ब्रह्मांडों की श्रृंखला को बताती है देवी महाकाली की मुंडमाला।
देवी महाकाली की लंबी जीभ ब्रह्माकार वृत्ति का प्रतीक है । देवी महाकाली जी का स्वरूप केवल उनके लिए भयकारी है, जो उनके रूप के तात्पर्य को नहीं समझते हैं । महाकाली जी अज्ञान और दुष्प्रवृत्तियों की पराजय के लिए कटिबद्ध हैं । अहंकार, अज्ञान, क्रोध, ईर्ष्या, स्वार्थ, लालच और घमंड पर विजय और उनके पराभव के लिए मां की शक्ति और सामर्थ्य निश्चित और सफल है।
अब देवी महाकाली जी के इतने शक्तिशाली कार्यों को कौन सी शक्ति सहारा देने के योग्य हैं, केवल भगवान शिव । वे तो अपने अनन्त, तपस, वैराग्य, प्रज्ञा और आंतरिक शांति के साथ अपनी स्वीकृति प्रदान करते है । इसी को प्रतीकात्मक तरीके से दर्शाया जाता है । भूमि पर नीचे लेटे हुए शिव जी और उन पर नृत्य करती तीन गुणों से निर्मित प्राकृतिक रूप हैं महाकाली।
मानव शरीर के पूर्ण क्षय एवं नाश का स्थान है श्मशान । श्मशान मानव देह की अंतिम गति को बताता है, जहां बौद्धिक मूल्यांकन से बढ़कर यथार्थ और गहरी अनुभूति होती है । शरीर के नश्वर स्वभाव को समझकर अपने वास्तविक स्वरूप को अच्छी तरह जानने के लिए यह अति शक्तिशाली अनुभव सिद्ध होता है।
दिव्य मां और उनके भक्तों के प्रेम एक विलक्षण संबंध है । इसकी अभिव्यक्ति विविध प्रकार से की गई है । भयकारी आकृति धारण करने के बावजूद महाकाली ऐसी देवी हैं, जिनके साथ भक्त आत्मीयता का अनुभव करते हैं । इस संबंध के अंतर्गत भक्त बालक बन जाता है और महाकाली मां का रूप धारण कर लेती हैं । लपलपाती जीभ और मुंडमाला के साथ भगवान शिव की छाती पर नृत्य करती देवी को प्राय: लोग अत्यंत भयानक समझते हैं।
देवी महाकाली जी के प्रतीक को तभी समझा जा सकता है, जब उसके अर्थ की सही जानकारी प्राप्त हो । भगवान शिव परम तत्व हैं और देवी मां उनकी शक्ति हैं, जिन्हें प्रकृति के रूप में समझना चाहिए । संपूर्ण ब्रह्मांड या विश्व की अभिव्यक्ति उस परम तत्व की शक्ति के नृत्य का एक प्रकार है । शक्ति का अदृश्य आधार शिव हैं।
देवी महाकाली द्वारा प्रत्येक मुंड एक ब्रह्मांड है । यहां ब्रह्मांड को मुंड के रूप में दिखाया गया है, क्योंकि जो भी अस्तित्व में आता है, उसका नाश अवश्यंभावी है । मुंडमाला धारण करने वाली देवी महाकाली जी संदेश देती हैं कि जिस विश्व के पीछे तुम ध्यान लगाए हुए हो, वह नाशवान और परिवर्तनशील है । वस्तुत: नष्ट हुए ब्रह्मांडों की श्रृंखला को बताती है देवी महाकाली की मुंडमाला।

देवी महाकाली की लंबी जीभ ब्रह्माकार वृत्ति का प्रतीक है । देवी महाकाली जी का स्वरूप केवल उनके लिए भयकारी है, जो उनके रूप के तात्पर्य को नहीं समझते हैं । महाकाली जी अज्ञान और दुष्प्रवृत्तियों की पराजय के लिए कटिबद्ध हैं । अहंकार, अज्ञान, क्रोध, ईर्ष्या, स्वार्थ, लालच और घमंड पर विजय और उनके पराभव के लिए मां की शक्ति और सामर्थ्य निश्चित और सफल है।
अब देवी महाकाली जी के इतने शक्तिशाली कार्यों को कौन सी शक्ति सहारा देने के योग्य हैं, केवल भगवान शिव । वे तो अपने अनन्त, तपस, वैराग्य, प्रज्ञा और आंतरिक शांति के साथ अपनी स्वीकृति प्रदान करते है । इसी को प्रतीकात्मक तरीके से दर्शाया जाता है । भूमि पर नीचे लेटे हुए शिव जी और उन पर नृत्य करती तीन गुणों से निर्मित प्राकृतिक रूप हैं महाकाली।
मानव शरीर के पूर्ण क्षय एवं नाश का स्थान है श्मशान । श्मशान मानव देह की अंतिम गति को बताता है, जहां बौद्धिक मूल्यांकन से बढ़कर यथार्थ और गहरी अनुभूति होती है । शरीर के नश्वर स्वभाव को समझकर अपने वास्तविक स्वरूप को अच्छी तरह जानने के लिए यह अति शक्तिशाली अनुभव सिद्ध होता है।