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एक प्रेरक कहानी - Sanatan-Forever

एक प्रेरक कहानी

एक प्रेरक कहानी

एक प्रेरक कहानी

कई हजार वर्ष पुरानी बात है। किसी गांव में फलाहारी परिवार रहता था। वह परिवार आदिकाल से ही फलाहारी था। मांसाहार, शाकाहार, अंडा आहार, दुग्धहार आदि से हमेशा दूर रहा और अपने बच्चों को भी सिखाया कि ये सभी पापी लोग हैं, भटके हुए लोग हैं इनसे दूर रहना। जिस दिन इन्हें सद्बुद्धि आ जाएगी, ये भी फलाहारी हो जाएंगे।

उस परिवार के दो लड़के थे, दोनों युवा हो चुके थे और उच्च शिक्षा के लिए शहर चले गए। शहर में दोनो को प्रेम हो गया लड़की से।

दोनों की प्रेमिकाएं बहुत सुंदर थी, समझदार थीं और गृहकार्य में दक्ष भी।

दोनो चाहते थे कि अपनी प्रेमिकाओं को मां बाप से मिलवाकर शादी पक्की कर ली जाए और पढ़ाई पूरी होते ही शादी कर लें।

लेकिन समस्या यह थी कि एक भाई की प्रेमिका शाकाहारी थी और दूसरी की प्रेमिका मांसाहारी। और दोनो को उनके घर में पैर रखने की भी अनुमति नहीं मिलने वाली थी।

लेकिन कहते हैं ना, प्रेम अंधा और साहसी होता है ?

तो दोनो ने साहस किया और अपने घर ले गए अपनी प्रेमिकाओं को माता पिता से मिलवाने।

माता पिता लड़कियों से मिलकर बड़े खुश हुए, लेकिन जब उनके आहार के विषय में पता चला तो माथा पीट लिया। उनका घर अशुद्ध हो चुका था और अब गंगाजल से धोना पड़ेगा।

शादी से उन्होंने इनकार किया, तो बेटों ने जान देने की धमकी दे डाली। अंत में माता पिता को शादी के लिए हां करनी पड़ी और पढ़ाई पूरी होने के बाद इनकी शादी भी करवा दी।

शाकाहारी लड़की और उसके घरवाले यह मानकर रिश्ते को स्वीकार लिया कि लड़का सुधर जाएगा और शाकाहार करने लगेगा। मांसाहारी परिवार और लड़की यह मानकर रिश्ता स्वीकार लिया कि लड़का सुधर जाएगा और मांसाहार शुरू कर देगा। फलाहारी परिवार और लड़के यह मान रहे हैं कि लड़की सुधर जाएंगी और फलाहारी हो जाएंगी।

सभी परिवार इस आस में हंसी खुशी जीते रहे मरने तक कि दूसरा सुधार जाएगा और उनकी तरह हो जाएगा।

आज भी ऐसे बहुत से परिवार हैं, जहां प्रेम, पैसा और पद प्रतिष्ठा देखकर अंधे होकर ऐसे परिवार से वैवाहिक संबंध बना लेते हैं, जो जिनकी प्रवृति, आहार, विचार बिलकुल विपरीत होता है। और फिर यह अपेक्षा करते हैं कि सामने वाला सुधर जाएगा और उनकी तरह हो जाएगा।

ऐसी मूर्खता करने से अच्छा यह नहीं कि अपनी ही प्रवृति, आचार विचार, मत मान्यताओं, परंपराओं का अनुसरण करने वाले व्यक्ति से विवाह करो, ताकि किसी को सुधारकर अपनी तरह बनाने की मेहनत ना करनी पड़े ?

मेरा मानना है कि फलाहारियों, शाकाहारियों, दुग्धाहरियों को किसी मांसाहारी, अंडाहारी से, तब तक विवाह नहीं करना चाहिए, जब तक वह आजीवन अपनी मूल प्रवृत्ति और आहार का त्याग कर उनकी तरह होने की शपथ ना ले ले।

विवाह का मूल उद्देश्य है परस्पर सहयोगी रहकर जीवन का आनंद लेना, ना कि एक दूसरे को सुधारने चक्कर में जीवन को बर्बाद करना।

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