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एक ऐसा मंदिर,जहां होती है भोलेनाथ के पैर के अंगूठे की पूजा - Sanatan-Forever

एक ऐसा मंदिर,जहां होती है भोलेनाथ के पैर के अंगूठे की पूजा

एक ऐसा मंदिर,जहां होती है भोलेनाथ के पैर के अंगूठे की पूजा

एक ऐसा मंदिर,जहां होती है भोलेनाथ के पैर के अंगूठे की पूजा

दुनियाभर में भगवान शिव के कई मंदिर हैं। सभी मंदिर की अपनी कोई न कोई विशेषता भी है। भगवान शिव के जितने भी मंदिर हैं, सभी जगह या तो उनके शिवलिंग की पूजा की जाती है या मूर्ति की, लेकिन राजस्थान के माउंट आबू के अचलगढ़ का अचलेश्वर महादेव मंदिर बाकी सभी मंदिरों से अलग है। क्योंकि, इस मंदिर में भगवान शिव के शिवलिंग या मूर्ति की नहीं बल्कि उनके पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है।

राजस्थान के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू को अर्धकाशी के नाम से भी जाना जाता है क्योकि यहां पर भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर हैं। पुराणों के अनुसार, वाराणसी भगवान शिव की नगरी है तो माउंट आबू भगवान शंकर की उपनगरी। अचलेश्वर माहदेव मंदिर माउंट आबू से लगभग 11 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर किले के पास है।

कहा जाता हैं कि यहां का पर्वत भगवान शिव के अंगूठे की वजह से टिका हुआ है। जिस दिन यहां से भगवान शिव के अंगूठा गायब हो जाएगा, उस दिन यह पर्वत नष्ट हो जाएगा। यहां पर भगवान के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक खड्ढा बना हुआ है। इस खड्ढे में कितना भी पानी डाला जाएं, लेकिन यह कभी भरता नहीं है। इसमें चढ़ाया जाने वाला पानी कहां जाता है, यह आज भी एक रहस्य है।

अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर के चौक में चंपा का विशाल पेड़ है। मंदिर में बाएं ओर दो कलात्मक खंभों पर धर्मकांटा बना हुआ है, जिसकी शिल्पकला अद्भुत है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र के शासक राजसिंहासन पर बैठने के समय अचलेश्वर महादेव से आशीर्वाद प्राप्त कर धर्मकांटे के नीचे प्रजा के साथ न्याय की शपथ लेते थे। मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है। गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम,बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की भव्य मूर्तियां हैं।

अचलेश्वर महादेव मंदिर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर अचलगढ़ के किले के पास ही है। अचलगढ़ का किला अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। कहते हैं कि इसका निर्माण परमार राजवंश द्वारा करवाया गया था। बाद में 1452 में महाराणा कुम्भा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया और इसे अचलगढ़ नाम दिया था।

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