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ईमानदारी का पथ - Sanatan-Forever

ईमानदारी का पथ

ईमानदारी का पथ

ईमानदारी का पथ

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नरोत्तम सेठ ने आज कहीं व्यस्त होने के कारण ईंट भट्टे पर फिर अपने बेटे को ही भेजा था ।

बेटे का मन क़भी भी भट्टा पर नही लगता , जिसके कारण वह अक्सर ग्राहकों से उलझ जाता था , जबकि नरोत्तम सेठ चाहते थे कि अब वह अपना अधिक से अधिक समय भट्टा पर दे जिससे वो अपने पुस्तैनी व्यवसाय में दक्ष हो सके।*

*अभी उनका बेटा आकर अपने केबिन में बैठा ही था कि मुनीम आ गया-” भईया जी एक बुजुर्ग  फटी-पुरानी पुर्जी लेकर आया है और दस हजार ईंट मांग रहा है।”*

*”क्या मतलब..!” बेटे ने पूछा ।*

*”कह रहा है कि सन उन्नीस सौ अड़सठ में पन्द्रह रुपया हजार के भाव से उसने दस हजार ईंट का दाम एक सौ पचास रुपया जमा किए थे जो आज लेने आया है।”*

*”दिमाग खराब है उसका । आज दस हजार ईंट की कीमत अस्सी हजार है, एक सौ पचास रुपये में कैसे दे देंगे , भगा दो उसको यहां से ….।”*

*”पर बड़े बाबूजी के हाथ की दस्तख़त की हुई रसीद है उसके पास है।”*

*”तो क्या हुआ…? तब क्यों नही ले गये थे । अब ,जब ईंट का मूल्य आठ हजार रुपये प्रति हजार है तब ये पन्द्रह रुपये के भाव से ले जाएंगे !”*

*सेठ का लड़का अभी मुंशी और बुजुर्ग को डाट ही रहा था कि नरोत्तम सेठ स्वयं आ गये। देखा, बेटा फिर आज किसी से उलझा हुआ है। कारण पूछने पर बेटे ने वह मुड़ी तुड़ी पुर्जी सेठ को पकड़ा दी।*

*सेठ पर्ची को देखते ही चौंक गये। अब बुजुर्ग की तरफ ध्यान से देखा और पहचानते ही मुस्करा पड़े। “धनीराम कहां गायब हो गये थे भाई,  पैसा जमा करके..मैने तब कितनी प्रतीक्षा की थी आपकी ? खैर ,अब ले जाओ ,दस हजार आपकी ईंट तो मेरे पास है ही।”*

*”पर पापा, अस्सी हजार की ईंट एक सौ पचास रुपये में कैसे संभव है ?” बेटे ने कहा ।*

*”बेटा जब इन्होंने पैसा जमा किया था तब वही भाव था। सन अड़सठ से इनका भी एक सौ पचास रुपया इस ईंट भट्ठा में लगा हुआ है और उससे पैसा कमाया है …

जिसके कारण हम अपने इस व्यवसाय को इतना बढ़ा सके । उस एक सौ  पचास रुपये की पूंजी का लाभ लगातार सन अडसठ से हम खा भी तो रहे है । ये मेरे हाथ की रसीद हैं ।

मुझे याद है तब मैंने अपने पिताजी के साथ इस भट्ठा पर आना शुरू किया था । यह मेरी ही उम्र के हैं शायद । जब मैने यह रसीद काट कर इन्हें दी थी तो इन्होंने हंसकर कहा था -‘अगर रसीद गायब हो गयी तो क्या होगा ?

तब मेरे पिताजी ने जो जवाब दिया था वह मुझे आज भी याद है। पिताजी ने कहा था कि अगर मेरे जीवन काल में आ गये तो रसीद न भी लाओगे तब भी आपका पैसा मुझ पर रहेगा …ईंट आपको मिलेगी क्योंकि मुझे आपका चेहरा याद है ,

लेकिन जहां तक रसीद की बात है तो अगर आप इसे रखे रह गये तो मेरे न रहने के बाद भी आपको ईंटें मिलेंगी ..क्योंकि बेईमानी न मुझमें है और न ही मेरे संस्कार व खून में ।”*

*इतना कहकर सेठ ने दस हजार ईंट बुजुर्ग के यहाँ पहुंचाने के लिए मुंशी को आदेशित कर दिया औऱ अपने बेटे के कंधे पर अपना हाथ रखकर बोला…

“.बेटा , तुम्हारे साथ परिस्थितियां चाहे कितनी भी प्रतिकूल हो लेकिन ईमानदारी का पथ क़भी न छोड़ना “। व्यापार ईमानदारी और पक्की जुबान से फलता फूलता है । छल से कमाई लक्ष्मी ज्यादा दिन नही ठहरती।

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