*आज का श्लोक भगवद्गीता से*&*आज का विचार*

*आज का विचार*
*यदि सफलता एक सुन्दर पुष्प है तो विनम्रता उसकी सुगन्ध। जिंदगी में जो चाहो हासिल कर लो, बस इतना ख्याल रखना कि, आपकी मंजिल का रास्ता, लोगो के दिलों को तोड़ता हुआ न गुजरे.!*
*अभिमान तब आता है जब हमे लगता है हमने कुछ काम किया है, और सम्मान तब मिलता है जब दुनिया को लगता है कि आप ने कुछ महत्वपूर्ण काम किया है.!!*
*॥ जय श्री राधे कृष्ण ॥*
*सुप्रभात*

*आज का श्लोक भगवद्गीता से*

अध्याय 6 : *ध्यानयोग*
श्लोक *6.5*
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥५॥
*भावार्थ*
*मनुष्य को चाहिए कि अपने मन की सहायता से अपना उद्धार करे और अपने को नीचे न गिरने दे | यह मन बद्धजीव का मित्र भी है और शत्रु भी |*
*तात्पर्य*
प्रसंग के अनुसार आत्मा शब्द का अर्थ शरीर, मन तथा आत्मा होता है | योगपद्धति में मन तथा आत्मा का विशेष महत्त्व है | चूँकि मन ही योगपद्धति का केन्द्रबिन्दु है, अतः इस प्रसंग में आत्मा का तात्पर्य मन होता है | *योगपद्धति का उद्देश्य मन को रोकना तथा इन्द्रियविषयों के प्रति आसक्ति से उसे हटाना है* | यहाँ पर इस बात पर बल दिया गया है कि मन को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाय कि वह बद्धजीव को अज्ञान के दलदल से निकाल सके | इस जगत् में मनुष्य मन तथा इन्द्रियों के द्वारा प्रभावित होता है | *वास्तव में शुद्ध आत्मा इस संसार में इसीलिए फँसा हुआ है क्योंकि मन मिथ्या अहंकार में लगकर प्रकृति के ऊपर प्रभुत्व जताना चाहता है* | अतः मन को इस प्रकार प्रशिक्षित करना चाहिए कि वह प्रकृति की तड़क-भड़क से आकृष्ट न हो और इस तरह बद्धजीव की रक्षा की जा सके | मनुष्य को इन्द्रियविषयों से आकृष्ट होकर अपने को पतित नहीं करना चाहिए | जो जितना ही इन्द्रियविषयों के प्रति *आकृष्ट होता है वह उतना ही इस संसार में फँसता जाताहै | अपने को विरत करने का सर्वोत्कृष्ट साधन यही है कि मन को सदैव कृष्णभावनामृत में निरत रखा जाय* | _हि_ शब्द इस बात पर बल देने के लिए प्रयुक्त है अर्थात् इसे अवश्य करना चाहिए | अमृतबिन्दु उपनिषद् में (२) कहा भी गया है –
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः|
बन्धाय विषयासंगो मुक्त्यै निर्विषयं मनः ||
“ _मन ही मनुष्य के बन्धन और मोक्ष का भी कारण है | इन्द्रियविषयों में लीन मन बन्धन का कारण है और विषयों से विरक्त मन मोक्ष का कारण है |” अतः जो मन निरन्तर कृष्णभावनामृत में लगा रहता है, वही परम मुक्ति का कारण है_ |
