Warning: Attempt to read property "base" on null in /home/u599592017/domains/sanatan.techtunecentre.com/public_html/wp-content/plugins/wp-to-buffer/lib/includes/class-wp-to-social-pro-screen.php on line 89
आओ सनातन संस्कृति की ओर लौटे__ - Sanatan-Forever

आओ सनातन संस्कृति की ओर लौटे__

आओ सनातन संस्कृति की ओर लौटे__

आओ सनातन संस्कृति की ओर लौटे__

बरेली में मेरे ठीक पड़ोस के फ्लैट में एक बुजुर्ग दंपती रहते हैं। बच्चे बाहर रहते हैं। आते नहीं।

जनाब दिनभर टांग पर टांग धरे ऊंची आवाज़ में टीवी पर मीडिया समाचार देखते हैं। पत्नी के रूप में नौकरानी है, जो तर माल परोसकर देती हैं।

एक रोज सुबह वॉक के लिए निकला तो देखा जनाब एक थैला लिए लिफ्ट की ओर आ रहे हैं।

मैंने कहा–क्यों न रोज़ हम वॉक पर निकला करें। सेहत के साथ आपका दूध लाने का काम भी हो जाएगा? बोले–कल से चलते हैं।

अगले दिन हम साथ निकले। पता चला कि एक संगठन में वर्षो गुजारकर जनाब अब आराम फरमाते हैं। सरकारी नौकरी से रिटायर्ड।

मैंने पूछा–दिन कैसे कटता है?

बोले–टीवी और मोबाइल है न। काफी है।

मैं हंस पड़ा–टीवी तो ठीक, लेकिन मोबाइल से बात ही होती होगी।

बोले–नहीं। आजकल के बच्चे रील अच्छा बनाते हैं। टाइम पास हो जाता है।

अब बारी उनकी थी। बोले–आपका वक्त कैसे कटता है?

मैंने कहा–८ घंटे की नौकरी के अलावा घर के सारे काम खुद करता हूँ। अपना खाना भी खुद बनाता हूँ। वक्त को भी वक्त नहीं मिलता दूसरी ओर झांकने का।

जनाब हैरान। नौकरानी क्यों नहीं रखी? देखकर तो लगता है सैलरी अच्छी ही होगी!

मैंने कहा–बीते ७ वर्ष से स्वावलंबन की राह पर हूं। खाली वक्त में पढ़ता हूं और बेबाक बोलता हूं।

बोले– बोलने का मतलब?

मतलब सही को सही और गलत को गलत। इन ५३ वर्षों में मैंने अपनी मान्यताएं और विचारधारा बनाई है। ईश्वर को बाहर नहीं भीतर महसूस करता हूं। आडंबर पसंद नहीं। इंसानियत का पुजारी हूं।

फिर तो आप हिंदुत्व को भी नहीं…
मैं बोला–नहीं। मनुष्यत्व ज्यादा बड़ी बात है।

बोले–यहीं गड़बड़ है। बच्चे आजकल मनमर्जी से धर्म के बाहर विवाह कर रहे हैं….

तभी उनके दूध की डेयरी दिखी। मैं झट से बोला–मेरी वॉक बाकी है। कल मिलते हैं। उस दिन के बाद जनाब शाम को दूध लेने निकलते हैं।

अच्छी शिक्षा पतित, धर्मभ्रष्ट करती है। पहचान बदल देती है। फिर आप घर पर अपनी सत्ता ठाट से नहीं चला सकते। मां, बहन, पत्नी या बहू को नौकरानी नहीं बना सकते।

बच्चों को अपने मनमाफिक विवाह नहीं करवा सकते। मनमाफिक दहेज़ और गाय जैसी बहू नहीं ला सकते। लखपति दामाद नहीं ला सकते। तर माल जीमकर संस्कारों पर प्रवचन नहीं दे सकते।

इसलिए धर्म, पाखंड, दिखावा सब चाहिए। अश्लील रील्स भी चाहिए, पर शिक्षा नहीं। वरना उठाकर कोने में फेंक दिए जायेंगे।

बरेली में ऐसे दर्जनों फेंके हुए बूढ़े हैं। मरने के लिए २–३ बीएचके में छोड़ दिए गए। लेकिन उनकी दुम अभी तक टेढ़ी है।

अभी स्वरा और सोनाक्षी जैसी बहुत सी लड़कियां १९४०–६० की इस पीढ़ी को कोने में पटकने को निकलेंगी।

इसलिए शिक्षा के साथ साथ संस्कृति, संस्कार, धर्म और अपनी विरासत के बारे में बच्चों को बचपन से ज्ञान दे

नहीं आने वाले कल में यही देखने को मिलेगा जो कभी नहीं देखना चाहते हैं
या फिर पढ़–लिखकर वर्ष में एक दिन फादर्स डे मनाएंगी।

जो बोया है, उसे तो काटना ही होगा। कर्म से कैसे पीछा छूटेगा?

आओसनातनसंस्कृतिकीओरलौटे__

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Social Media Auto Publish Powered By : XYZScripts.com
Scroll to Top
Verified by MonsterInsights